मोदी और ट्रंप की केमिस्ट्री क्या ओबामा और मोदी जैसी बनेगी ? [@ तीखी मिर्च के बाद अब यहां के खेतों से मिलेगी पपीते की मिठास]
उमाकांत त्रिपाठी
नई दिल्ली। आज अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रूप में रिपब्लिकन पार्टी के 70 वर्षीय नेता डोनाल्ड ट्रंप वाशिंगटन डीसी में शपथ लेंगे। अनुमान के मुताबिक करीब 10 लाख लोग शपथ ग्रहण समारोह में जुटेंगे। जहां ट्रंप के समर्थकों को उम्मीद है कि उनके लिए नए राष्ट्रपति आर्थिक समृद्धि लेकर आएंगे वहीं ट्रंप के विरोधी लगभग 60 गुट ऐसे भी हैं जो कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने का विरोध कर रहे हैं और शपथ ग्रहण समारोह में उनके विरोध प्रदर्शन करने की भी उम्मीद है। जाहिर है ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से जहां समर्थक खुश हैं वहीं उनके विरोध करने वालों की संख्या भी कम नहीं है।
डोनाल्ड ट्रंप के जीतने के बाद भारत में कुछ हिंदू कट्टरपंथियों ने लड्डू जरूर बांटे थे। यह वे कट्टर हिंदूपंथी हैं जो डोनाल्ड ट्रंप को पसंद करते हैं। इसके अलावा भारतीय मूल के कुछ गुजराती हैं जिन्होने हिंदूज फॉर ट्रंप नाम की एक संस्था बना रखी है। इससे एक बात जाहिर होती है कि ट्रंप भारत को थोड़ा बहुत जरूर जानते होंगे और थोड़ा बहुत भारत भी उन्हे जरूर जानता है। लेकिन विदेश नीति हमेशा देश हित पर निर्भर करती है इसलिए जहां देश हित की बात आएगी वहीं भावनाएं नहीं देखी जाएंगी।
ट्रंप से भारत के रिश्ते कैसे होंगे इसको जानने से पहले दो बातों को जान लेना आवश्यक है। पहली तो यह कि बराक ओबामा के कार्यकाल में भारत-अमेरिका के रिश्ते कैसे रहे हैं दूसरी बात यह कि बराक ओबामा और डोनाल्ट ट्रंप के विचारों और नीतियों में कितना अंतर है।
भारत में पहली बार 1959 में अमेरिकी राष्ट्रपति आइजेनहावर आए थे। उनके बाद कई राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आए। लेकिन बराक ओबामा के दौरे के बाद भारत और अमेरिका के रिश्ते में जो परिपक्वता आई वह पहले कभी देखने को नहीं मिली। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अब तक तीन बार अमेरिका का दौरा किया वहीं पीएम मोदी के बुलावे पर बराक ओबामा गणतंत्र दिवस के परेड में शामिल हुए थे।
यह सभी उदाहरण भारत-अमेरिका रिश्ते की घनिष्ठता दिखाते हैं। इसके अलावा अमेरिका में नौकरी करने गए वे प्रवासी जिनके पास पूरे कागजात नहीं हैं उन्हे तीन साल का वर्क परमिट देना और मोदी का वीजा ऑन अराइवल का ऐलान करना भी दोनों देशों की प्रगाढ़ता के लिए बड़ा कदम था। सीआरएस (कांग्रेसियल रिसर्च सर्विस) ने अपनी एक रिपोर्ट इंडिया: डोमेस्टिक इशूज, स्ट्रेटिजिक डायनामिक्स एंड यूएस रिलेशंस’ में कहा था कि बराक ओबामा ने भारत-अमेरिकी संबंध को और घनिष्ठ करने की कोशिश की है जिसकी शुरुआत बिल क्लिंटन ने की थी।
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