नरेंद्र शर्मा
अमृतसर । पंजाब विधानसभा चुनाव में इस बार लड़ने वाली दो की बजाए तीन बड़ी पार्टियां हैं, मैदान भी तैयार है, लेकिन फिर भी न जाने क्यों पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार चुनावी रण कुछ ठंडा सा पड़ा हुआ है । केजरीवाल को छोड़कर कोई एक दूसरे के प्रति आक्रामक नज़र नहीं आ रहा है । न तो बादल परिवार अमरिंदर को कोस रहा है और न ही अमरिंदर के हाथ में अभी खुंडा आया है और न ही उनकी जुबान पर बन्दर और बलूगडा जैसे शब्द आये हैं । बल्कि अभी तो दोनों लखनवी अंदाज़ में एक दूसरे को पहले आप पहले आप के जुमलों से नवाज रहे हैं !
केजरीवाल ने दिल्ली के विधायक जरनैल सिंह को लंबी से प्रकाश सिंह बादल के मुकाबले चुनाव मैदान में उतारा तो किसी की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी । लेकिन कैप्टन ने ट्वीट करके केजरीवाल पर हल्ला बोल दिया । यही नहीं वह आधा घण्टे तक केजरीवाल के साथ सवाल-जवाब में उलझे रहे । इसके इलावा पिछले एक साल के दौरान कैप्टन के बयानों को देखा जाये तो स्पष्ट हो जाता है की वह बादल परिवार की बजाए केजरीवाल को लेकर अधिक परेशान रहें हैं ।उनके अधिकांश बयान केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को लेकर हैं ! जैसे की उनकी लड़ाई अकाली दल के साथ नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी के साथ हो । यह भी देखा गया है की इस समय के दौरान बादलों ने भी कभी कैप्टन को निशाना नही बनाया बल्कि उनका निशाना भी केजरीवाल ही रहे है । कैप्टन की इस तडप का कारण बादल थे या जरनैल सिंह । यह तो वही बता सकते हैं परन्तु एक बात तय है की बादल के प्रति अब उनके मन में सहानुभूति अवश्य है ।यह सहानुभूति उनकी उम्र के कारण हो या किसी और कारण से, कुछ न कुछ तो अवश्य है । इस बात को शायद कांग्रेस हाईकमान भी भांप चुका है । हाई कमान यह भी अनुभव कर रहा था की बादलों के प्रति कैप्टन की चुपी राज्य में पार्टी को कमजोर कर रही है । लेकिन दूसरी तरफ कैप्टन ने कांग्रेसी विधायकोंं को अपने साथ जोड़कर हाई कमान के हाथ बांध रखे थे । ऐसे में अगर वह कैप्टन के खिलाफ कोई कार्रवाई करता तो बगावत का डर था । मज़बूरी में पार्टी ने कमान तो कैप्टन को सौंप दी मगर विकल्प की तैलाश में जुटी रही । शीघ्र ही उसे सिद्धू के रूप में कैप्टन का विकल्प मिल गया । आनन- फानन में कांग्रेस ने उसे लपक लिया । शायद नवजोत सिंह सिद्धू को कांग्रेस में लाने का कारण भी यही है ! दरअसल कांग्रेस हाईकमान यह समझ चुका था कि अब कैप्टन बादल से टक्कर लेने की स्थिति में नहीं हैं । यही कारण था की वह कैप्टन के हाथ में प्रदेश की कमान देने से कतरा रहे थे । कांग्रेस हाईकमान ने सिद्धू को पार्टी में लेकर सन्तुलन बना लिया है । अगर कैप्टन बादलों से नही लड़ेंगे तो सिदू उनके साथ दो -दो हाथ करेगा । क्योंकि सिद्धू मूल रूप से बादलों के विरुद्ध है । इन परिस्थितियों में कैप्टन को भी बादलों के साथ लड़ना पड़ेगा । बेशक यह लड़ाई दिखावे की ही क्यों न हो । अगर कैप्टन नहीं लड़ेंगे तो उनकी असलियत सामने आ जाएगी । कांग्रेस हाई कमान ने कैप्टन को बुरी तरह फंसा लिया है । अब कैप्टन को पार्टी में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बादलों के साथ लड़ना होगा । अब देखने वाली बात यह है की इस चुनाव में अकालियों के साथ लड़कर सिकंदर कौन बनता है । [@ वर्ष 2016 की वे खबरें जो बनी पूरे विश्व में चर्चा का विषय ]
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