कपूरथला। आम आदमी पार्टी, शिअद और कांग्रेस के उम्मीदवार के बाद चुनावी सियासी अखाड़ा तैयार हो गया है। सभी उम्मीदवार अभी से ही अपने दांव पेंच खेलने लग गए हैं। ऐसा पहली बार होगा कि कपूरथला-सुल्तानपुर लोधी में त्रिकोणीय कड़ा मुकाबला होगा। कपूरथला एक ऐसी सीट है, जहां 1980 से 2012 तक हुए 8 चुनाव में 6 चुनाव कांग्रेस जीती, जबकि शिअद (शिरोमणी अकाली दल) दो बार, उधर सुल्तानपुर लोधी का इतिहास उलट रहा है। वहां 1980 से हुए 7 चुनाव में 5 बार शिअद जीता, जबकि कांग्रेस 2 बार ही। पहले चुनावों में कांग्रेस और शिअद ही चुनाव लड़ती रही है, लेकिन अब 2017 के चुनाव में तीसरी पार्टी आप भी मैदान में है। दोनों सीटों पर तीनों पार्टी के उम्मीदवार मैदान में उतर चुके हैं।
सुल्तानपुर लोधी सीट पर 1980 से हुए 7 चुनाव में 5 बार शिअद और 2 बार कांग्रेस जीती है। शिअद के जीतने का मुख्य कारण दिग्गज बाबू आत्माराम की बेटी बीबी उपिंदरजीत कौर को बार-बार उम्मीदवार बनाना है, लेकिन साल 2012 में उनको हारना पड़ा। 2012 से यहां कांग्रेस के नवतेज सिंह चीमा जीते थे, अब भी वही उम्मीदवार हैं। बीबी उपिंदरजीत 1997, 2002 और 2007 में जीतीं, जो बाद में पंजाब की खजाना मंत्री और शिक्षा मंत्री भी बनीं।
आंकड़े बताते हैं कि साल 1980 के विधानसभा चुनाव में कपूरथला से शिअद के रघुबीर सिंह ने कांग्रेस के मिलखी राम को हरा कर दस्तक दी थी। साल 1985 में दोनों पार्टियों ने ही अपने उम्मीदवार बदल दिए। इस कारण कांग्रेस के किरपाल सिंह ने शिअद के विनोद चड्डा को हरा कर सीट पर अपना कब्जा कर लिया। साल 1992 में कांग्रेस ने गुलजार सिंह को मैदान में उतारा। उनसका मुकाबला भाजपा के हीरा लाल धीर से हुआ, लेकिन कांग्रेस के गुलजार सिंह जीत गए। साल 1997 के चुनाव में रघुबीर सिंह फिर से शिअद के उम्मीदवार बने, जिसका मुकाबला कांग्रेस के गुलजार सिंह से हुआ। इस कारण कांग्रेस यह सीट हार गई। बस उसी दिन के बाद से कांग्रेस ने वहां पर अपना एक ही चेहरा राणा गुरजीत सिंह ही रखा। तभी से शिअद को साल 2002, 2004, 2007 और 2012 के चुनाव में हार ही हाथ लगी। राणा परिवार 2002 से कपूरथला सीट पर काबिज है। इस बार भी राणा परिवार से ही टिकट दी गई है। वही दूसरी तरफ कांग्रेस आला कमान ने कपूरथला रियासत के मौजूदा विधायक राणा गुरजीत सिंह एवं नानक की नगरी सुल्तानपुर लोधी के सिटिंग एमएलए नवतेज सिंह चीमा पर फिर से अपना भरोसा बरकरार रखते हुए चुनाव मैदान में उतारा है। इससे पूर्व राणा दो बार कपूरथला से विधायक चुने जा चुके हैं और एक बार जालंधर हलके से सांसद बने थे, जबकि नवतेज सिंह चीमा पिछली मर्तबा पहली बार सुल्तानपुर लोधी से विधायक चुने गए थे। कांग्रेस ने जिले के दोनों सिटिंग विधायकों को फिर टिकट से नवाजा है।
राणा गुरजीत सिंह एवं उनके परिवार की तरफ से विधानसभा हलका कपूरथला से वर्ष 2002 से लगातार नुमाइंदगी की जा रही है। एक उद्योगपति से राजनीति में आए राणा गुरजीत सिंह ने पहली बार वर्ष 2002 में विधानसभा हलका कपूरथला से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा था और पहले चुनाव में ही शिअद के प्रत्याशी साबका परिवहन मंत्री रघुबीर सिंह को पराजित करने में सफलता हासिल की थी। इसके पश्चात कांग्रेस की तरफ से राणा गुरजीत सिंह को लोकसभा का चुनाव लड़ा दिया गया और वह जालंधर लोकसभा हलके से सांसद चुने गए। इस वजह से राणा की विधानसभा कपूरथला से खाली हुई सीट पर उनकी भाभी सुखजिंदर कौर राणा उर्फ सुक्खी राणा उप चुनाव लड़ीं और पंजाब में अकाली सरकार होने के बावजूद वह चुनाव जीतने में सफल रहीं। इसके बाद 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में राणा गुरजीत की पत्नी राजबंस कौर राणा ने चुनाव लड़ा और शानदार जीत हासिल की। पांच साल हलके की नुमाइंदगी के बाद 2012 में हुए चुनावों में राणा गुरजीत सिंह स्वयं चुनाव लड़े। उन्होंने अकाली दल के आदमपुर से कपूरथला में आकर चुनाव लडऩे वाले विधायक सर्बजीत सिंह मक्कड़ को हराया। राणा गुरजीत सिंह के इस सियासी जीवन के दौरान कई उप चुनाव भी आए, लेकिन राणा परिवार ने अपराजित रहते हुए हर चुनाव में शानदार जीत हासिल की। इस बार फिर से कांग्रेस पार्टी द्वारा राणा गुरजीत सिंह को चुनाव मैदान में उतारा जा रहा है। आम लोगों से अच्छे मेल मिलाप एवं जफ्फी के कारण राणा हलके में काफी लोकप्रिय माने जाते हैं।
अब देखना होगा कि वह इस बार त्रिकोणीय मुकाबले में अपनी नइया को किस ढंग से पार लगते हैं। उधर सुल्तानपुर लोधी के मौजूदा युवा विधायक नवतेज सिंह चीमा तीसरी बार चुनाव लडऩे जा रहे हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने पंजाब की पूर्व वित्त मंत्री डॉ. उपिंदरजीत कौर को लगभग 4350 वोटों के अंतर से पराजित किया था। नवतेज सिंह चीमा को राजनीति विरासत में ही मिली है। उनके पिता गुरमेल सिंह चीमा भी विधानसभा हलका सुल्तानपुर लोधी की नुमाइंदगी कर चुके हैं और स्वर्गीय बेअंत सिंह सरकार में मंत्री भी रह चुके है। चीमा कांग्रेस का एक युवा चेहरा है, जिन्होंने करीब 33 साल की आयु में विधान सभा का पहला चुनाव लड़ा था, लेकिन 2007 में वे हार गए थे। उसके बाद उन्होंने इलाके में अपनी अच्छी पकड़ व पैठ बनाई और पिछले चुनावों में शानदार ढंग से जीत हासिल की। चुनाव जीतने के बावजूद चीमा अपने इलाकों में पूरी तरह सक्रिय रहे है और हलके के लोगों के प्रत्येक दुख-सुख में शिरकत करते आ रहे हैं। चीमा ने हाईकमान का आभार जताते हुए कहा कि वह सुल्तानपुर लोधी की सीट जीत कर पार्टी की झोली में डालेंगे। उल्लेखनीय है कि राणा व चीमा दोनों का कैप्टन गुट से सीधा संबंध रहा है और दोनों के हलकों में टिकट का कोई अन्य दावेदार नही था। इस वजह से पार्टी ने उन पर विश्वास व्यक्त करते हुए उन्हें पार्टी का चेहरा बनाया है। राणा प्रदेश कांग्रेस में वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं, जबकि चीमा चीफ विप की सेवाएं निभा रहे हैं।
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