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आस्था का केंद्र और स्थापत्य कला का अनूठा केंद्र

भीलवाड़ा। हरीतिमा के शामियाने ताने पर्वतमालाएं, कल-कल करती बहती जलधाराएं और झर-झर झरते झरने किसी को भी रोमांचित कर देते हैं। ऐसा ही स्थल है भीलवाड़ा में मैनाल। जो आस्था का केन्द्र होने के साथ स्थापत्य कला की खुली किताब भी है। ये प्रकृति और पुरातत्व का अद्भुत संगम स्थल भी हैं। लेकिन पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते अब ये खण्डहर में तब्दील होता जा रहा हैं। जबकि आपको बता दें कि इस ऐतिहासिक झरने के बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मन की बात में भी जिक्र किया था। ये स्थल भीलवाड़ा से 80 किलोमीटर दूर चित्तौडगढ-कोटा हाईवे पर स्थित ऊपरमाल पठार पर है। पृथ्वीराज द्वितीय के शासनकाल में सन 1164 से 1169 के बीच संत भावब्राहृा की ओर से इस मठ की स्थापना की गई थी। कभी दुनियाभर के लिए दर्शनीय स्थल कहे जाने वाला ये मेनाल आज पुरातत्व विभाग की लापरवाही के चलते खंडहर होता जा रहा है। साथ ही चारों तरफ बिखरे पड़े हैं मन्दिरों के अवशेष। जिसकी कोई सुध लेने वाला नहीं हैं। यहां आने वाले हजारों पर्यटक और श्रद्धालूओं का भी यहीं कहना है कि यहां आकर उन्हें आनंद तो मिलता है। लेकिन जब वे यहां की दुर्दशा देखते हैं तो अफसोस होता हैं। आखिर वे भी चाहते हैं कि जल्द से जल्द राज्य और केंद्र सरकार यहां की सुध ले और इसकी हालत को फिर से दर्शनीय करें।

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Web Title-The center of faith and architecture unique center
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