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दम तोड़ते चूड़ियों के लघु उद्योग को सरकारी मदद की आस

हाथरस। सुहाग, शुभ कार्य और परम्पराओं के साथ चूड़ियों का काफी पुराना नाता है। पर चूड़ियों के कारोबार की बात करें तो सबसे पहले जहन में फीरोजाबाद का नाम आता है। पर सुहाग की चूड़ियों के लिए आज भी हाथरस के हसायन की चूड़ियां ही मानी जाती है। इन चूड़ियों की सप्लाई हसायन से ही फीरोजाबाद होती है। पर आज हसायन का ये लघु उद्योग सरकारी मदद के बिना दम तोड़ रहा है।

यहां आग में तपाकर चूड़ियां तैयार की जाती हैं। इस कस्बे में हर दूसरा आदमी इस कारोबार में लगा है। पूरे गांव में लगभग 27 भट्टियों पर करीब 700 मजदूर काम करते हैं। सदियों से हसायन में चूड़ी की खनक सुनाई देती रही है अब उसकी चमक और खनक दोनों ही धीमे पड़ते जा रहे हैं।

इन मज़दूरों के पास संसाधनों की कमी है। कभी हसायन में दर्जनों की संख्या में भट्टियां कार्यरत थीं पर वर्तमान में ये कारोबार सिमटता जा रहा है। प्रदुषण में 10 घंटे तक लगे रहने के बाद भी मुनाफे के नाम पर मुट्ठी पर पैसे इन्हे मिलते हैं।

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