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संस्थान की कोर्ट से अपील आशुतोष महाराज मामले में भी मिले छूट

Society appeal to court give the benifit in ashutosh saint case - Chandigarh News in Hindi

चंडीगढ़। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने पंजाब एंव हरियाणा हाई कोर्ट से कहा कि आशुतोष महाराज के शरीर का अंतिम संस्कार मामले में जयललिता मामले की तरह छूट मिलनी चाहिए। संस्थान ने आशुतोष महाराज केे अंतिम संसकार के आदेश को चुनौती दी है। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान संस्थान ने शरीर को संरक्षित करने के पक्ष में दलीलें देते हुए कहा कि हिंदू धर्म के अनुसार जयललिता का अंतिम संस्कार होना चाहिए था, लेकिन उनके लाखों समर्थकों और परिस्थितियों को देखते हुए अंतिम संस्कार नहीं किया गया। यह मामला भी लाखों श्रद्घालुओं की आस्था से जुड़ा है और इस मामले में भी ऐसी छूट दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने आशुतोष महाराज के बेटे के दावे पर जवाब मांगा तो संस्थान ने कहा कि महाराज संन्यासी हैं और ऐसे मेंं उनका कोई अन्य परिवार नहीं है। इस पर हाईकोर्ट ने पूछा कि इसे कैसे साबित किया जाएगा कि वह संन्यासी हैं और इस बात का क्या प्रमाण है कि वह हिंदू थे। इस पर संस्थान के वकील ने दलील दी कि दुनिया में कई बड़े नेताओं के शव को संरक्षित करके रखने के कई उदाहरण हैं। ऐेसे में महाराज को भी ऐसे ही रखा जा सकता है। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बड़े नेताओं का मामला अलग होता है, क्योकि उन्हें इस प्रकार रखना राज्य का निर्णय होता है। अभी वर्तमान में सरकार का इस मामले पर कोई स्टैंड नहीं है। सुनवाई के दौरान संस्थान की ओर से कहा गया कि कुछ धर्मों में शरीर को पक्षियों के लिए खुले में छोड़ देने की मान्यता है, इसे शरीर का अपमान नहीं माना जाता है। ऐसे मेंं महाराज के शरीर को फ्रीज में संरक्षित करके रखना उनका असम्मान कैसे हो गया? संस्थान ने दलील दी कि महाराज के शरीर को भक्तों के दर्शन के लिए रखा गया है। उनका शरीर लाखों श्रद्घालुओं की श्रद्घा का केंद्र है। इस पर हाई कोर्ट ने पूछा कि कहीं श्रद्धालुओं की संख्या को बढ़ाना ही तो उनके शरीर को रखने का कारण नहीं। इस पर कहा गया कि संविधान में कहीं भी जिक्र नहीं है कि शरीर का अंतिम संस्कार अनिवार्य है। संविधान और कानून में मृत शरीर के सम्मान या असम्मान की भी कोई परिभाषा नहीं है।

[@ फ्लैश बैक 2016 - कोर्ट आदेश]

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Web Title-Society appeal to court give the benifit in ashutosh saint case
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