बाड़मेर। आज देशभर में शिवरात्रि का महापर्व मनाया जा रहा है और भोलेनाथ के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। वहीं राजस्थान का खजुराहो कहे जाने वाले बाड़मेर के किराडू मंदिरों में सिवाय वीरानी छाई दिखाई देती है। किसी जमाने में श्रद्धालुओं की भीड़ से आबाद रहने वाले यह मंदिर आज विरानी का दंश झेल रहे हैं। मुगल आक्रांताओं ने इन मंदिरों के वैभव को धुमिल कर दिया था, जिसकी वजह से अब यहां पूजा अर्चना नहीं होती। [# इस पत्थर से दही जमाते हैं गांव के लोग ] [# अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
अब यहां न शंखनाद है, न झांझर की झंकार। न बेल पत्र की पूजा है और न ही दूध का अभिषेक। शिव मंदिर होने के बावजूद यहां केवल वीरानी का आलम पसरा रहता। किराडू प्राचीन पांच मंदिरों का एक समूह है, जो बाड़मेर से 39 किलोमीटर की दूरी पर हाथमा गांव में स्थित है। यहां वर्ष 1161 के एक शिलालेख से पता चलता है की हाथमा को पहले किरतकूप के नाम से भी जाना जाता था जो कि पहले पनवारा वंश की राजधानी भी थी। यहां के पांचों मंदिरों में सोमेश्वर मंदिर सबसे बड़ा है। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में बनाया गया था। एक बहु बुर्जदार स्तूप और विभिन्न हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां भी इस मंदिर में मौजूद हैं। मंदिर के भीतरी कक्ष में भगवान का एक चित्र है, जबकि मंदिर का आधार एक वक्र कमल के समान है।
यहाँ मौजूद अन्य चार मंदिर भगवान विष्णु और शिव को समर्पित है। महाकाव्य रामायण के कई प्रसंग मंदिर की दीवारों व खम्भों पर बनी कलाकृतियों में दिखते हैं। इन कलाकृतियों में अप्सराओं के भी कई सारे चित्र मौजूद हैं।
किराडू के इन मंदिरों में शिव मंदिर शिव रात्रि को ख़ामोशी और वीरानी की चादर ओढ़े हुए है। एक जमाने में शिव रात्रि को होने वाली यहाँ की पूजा के चर्चे हर तरफ होते थे, लेकिन मुगल आक्रांताओं की बुरी नजर ने सब कुछ छीन लिया। जानकार बताते है कि यहां के मंदिरों के वैभव देख कर उस समय शिवरात्रि की पूजा का अंदाजा लगाया जा सकता है।
स्थापत्य कला के लिए मशहूर इन प्राचीन मंदिरों को देखकर ऐसा लगता है मानो शिल्प और सौंदर्य के किसी अनूठे लोक में पहुंच गए हों। पत्थरों पर बनी कलाकृतियां अपनी अद्भुत और बेमिसाल अतीत की कहानियां कहती नजर आती हैं। खंडहरों में चारो ओर बने वास्तुशिल्प उस दौर के कारीगरों की कुशलता को पेश करती हैं।
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