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आम चुनाव से आम आदमी गायब

normal man missing from normal election - Amritsar News in Hindi

अमृतसर। नरेंद्र शर्मा। पहले परिस्थितियों और आवश्यकता के अनुसार आम आदमी मुद्दे तय करता था। पार्टियां इन मुद्दों को उठाकर मतदाता की अदालत में जाती थी और मतदाता उसपर अपना निर्णय देता था। जो पार्टी या उम्मीदवार जनसाधारण की आवाज को जितना अधिक साथ लेकर चलता था। उसे उतनी अधिक सफलता प्राप्त होती थी। लेकिन अब मुद्दे पार्टियां तय करती हैं और फिर मतदाता के बीच जाकर इनका ढिढ़ोरा पिटती हैं। जिस पार्टी की आवाज जितनी अधिक प्रभावशाली और ऊंची होती है। मतदाता उसकी ओर ही झुक जाता है। ये आम धारणा रही है कि पार्टियों को चुनाव के समय आम आदमी के साथ जुड़े गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, रोटी कपड़ा और मकान जैसे मुद्दों की याद आती है। परन्तु अब इन मुद्दों का कोई नाम नहीं बचा है। ऐसा लगता है कि जैसे देश इन छोटी-छोटी बातों से कहीं आगे निकल गया है। अब उसकी प्राथमिकताएं बदल गई है। शायद यही कारण है कि इस बार पंजाब विधानसभा चुनावों में इनमें से कोई मुद्दा प्रभावशाली बनकर नहीं उभरा है। बल्कि इस के स्थान पर एसवाईएल, चिट्टा, नोटबंदी, किसानों की आत्महत्याएं, ऋण माफी और आतंकवाद जैसे मुद्दे उभरकर सामने आ रहे हैं। कृषि प्रधान राज्य पंजाब में दो तिहाई आबादी खेती पर निर्भर है और इसे अच्छे तरीके से उठाने वाली पार्टी आसानी से जीत हासिल कर सकती है। इस दिशा मेें इस समय सभी राजनीतिक दलों के बीच एसवाईएल का मुद्दा गरमाया हुआ है। सभी इस मुद्दे को अपनाकर खुद को सबसे बड़ा किसान हितैषी साबित करने में जुटे हैं। साथ ही किसानों के ऋण का मुद्दा भी इन चुनावों में गरमा सकता है। क्योंकि प्रदेश के 50 लाख किसानों में से करीब 20 लाख से अधिक किसान कर्ज के तले दबे हैं। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने सत्ता में आने पर कर्जा माफी की घोषणा कर रखी है। दूसरी ओर अकाली दल या बादल परिवार सिख वोटों का विकेन्द्रीकरण करने के लिए सिख दंगों और ब्लूस्टार जैसे मुद्दे उठाने से परहेज भी नहीं कर रहे हैं। परन्तु अब इनका कुछ खास अंतर पड़ता नजर नहीं आ रहा है। बैसे तो चिट्टे (हेरोइन) का मुद्दा पिछले चुनावों में भी अहम मुद्दा था। परन्तु विपक्ष इस बार भी इस मुद्दे को अकालियों के विरुद्ध भुनाने का प्रयास करेगा। कुछ क्षेत्रों में इस मुद्दे का काफी प्रभाव पड़ेगा। क्योंकि इन क्षेत्रो में हजारों परिवार इससे प्रभावित हुए हैं। इसके अलावा भी कुछ क्षेत्रों में स्थानीय मुद्दे हावी हो सकते हैं। हैरानी की बात है कि गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, रोटी कपड़ा और मकान जैसे मुद्दों का इन चुनावों में कोई स्थान नहीं है और ये मुद्दे गौण हो चुके हैं।
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