आइये जानते हैं राजनीतिक पार्टियों के खातों का हाल [@ Punjab election-कौन करेगा राज, किसके सिर होगा मुख्यमंत्री का ताज...]
नेता हो या पार्टी, राजनेता हो या राजनीतिक दल दोनों पर नहीं है नोटबंदी का असर
उमाकांत त्रिपाठी
नई दिल्ली। अगले महीने पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। जिसको लेकर सभी सियासी पार्टियां अपने धन बल के साथ चुनावी रण में विजय हासिल करने में जुट गई हैं। यहां एक बात तो गौरतलब है कि आज के समय में राजनीति और पैसा दोनों एक दूसरे के पूरक बन गए हैं। बिना पैसे की राजीनीति के बारे में तो सोचा भी नहीं जा सकता। देश की सभी राजनीतिक पार्टियों के खाते पैसों से लबालब भरे होते हैं और उनमें दिन दूनी रात चौगनी की बढ़ोतरी भी होती रहती है। यहां यह बात समझ में नहीं आती कि आखिर क्यों चुनाव के समय दिए गए राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं के धन के ब्यौरे में हमेशा पिछली चुनाव में दिए गए ब्यौरे की तुलना में वृद्धि ही मिलती है।
नोटबंदी के बाद एक मामला प्रकाश में आया जिसमें कि प्रवर्तन निदेशालय ने बीएसपी के खाते में 104 करोड़ रुपये जमा होने का खुलासा किया था। यही नहीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती के भाई के खाते में 1.4 करोड़ रुपये जमा होने का खुलासा हुआ। हालांकि मायावती ने इसका जवाब दिया था फिर एक बात जो कि तथ्य है कि राजनीतिक पार्टियों के अकाउंट में पैसों की ग्रोथ आश्चर्य पैदा करने वाला है।
एक आरटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2004-05 में कांग्रेस के अकाउंट में 220.81 करोड़, बीजेपी के अकाउंट में 123.78 करोड़, बसपा के अकाउंट में 69.74 करोड़ और सपा के अकाउंट में 32 करोड़ रुपये थे जो कि पांच साल बाद यानि कि साल 2009-10 में बढक़र कुछ इस तरह हो गए। कांग्रेस पार्टी के अकाउंट में 12,43.67 करोड़, बीजेपी के अकाउंट में 60,1.81 करोड़, बसपा के अकाउंट में 308.74 करोड़, सपा के अकाउंट में 106.95 करोड़ जबकि रालोद के अकाउंट में 7.12 करोड़ रुपये हो गए।
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