सर्वोच्च न्यायालय ने तब अपने फैसले में कहा था कि CRPC की
धारा 125, जो परित्यक्त या तलाकशुदा महिला को पति से गुजारा भत्ता का
हकदार कहता है, मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है, क्योंकि सीआरपीसी की
धारा 125 और मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों में कोई विरोधाभास नहीं है।
हालांकि तब मुस्लिम धर्मगुरूओं और कई मुस्लिम संगठनों ने अदालत के फैसले को
शरिया में हस्तक्षेप कहकर इसका पुरजोर विरोध किया था और सरकार से
हस्तक्षेप करने की मांग की थी। हबीबुल्लाह उस समय प्रधानमंत्री कार्यालय
में निदेशक के पद पर नियुक्त थे और अल्पसंख्यक मुद्दों को देखते थे।
समाचार-पत्र द हिंदू में मंगलवार को प्रकाशित अपने स्तंभ में हबीबुल्लाह ने
कहा है, मैं अपनी मेज पर ऎसी याचिकाओं और पत्रों का अंबार पाया जिसमें
अदालत के फैसले की आलोचना की गई थी और सरकार से हस्तक्षेप कर अदालत का
फैसला पलटने की मांग की गई थी। वह आगे लिखते हैं,तब मैंने सुझाव दिया था कि
हर याचिकाकर्ता से कहा जाए कि वे सर्वोच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका
दायर करें। एक बार तो ऎसा लगा कि मेरा सुझाव मान लिया गया, हालांकि मुझे
कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
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