मथुरा। कान्हा की नगीर में आज भी एक ऐसा स्थान है जहां भगवान श्री कृष्ण ने 16108 गोपियों के साथ महारास किया था। कहा जाता है कि आज भी स्वयं भगवान श्री कृष्ण-राधा सहित गोपियों के साथ इसी स्थान पर महारास करते हैं। कहा यह भी जाता है कि इस महारास को जो भी देख लेता है कुछ भी बताने के काबिल नहीं रह पाता। या तो पागल या इस महारास को देखने की कीमत जान देकर चुकानी पड़ती है।मथुरा में निधिवन नाम का एक मंदिर है। कहा जाता है कि आज भी भगवान कृष्ण यहां महारास करने आते हैं। महारास का वर्णन कई वेदों और पुराणों में भी है। इसका प्रमाण यह भी माना जाता है कि निधिवन में बने भगवान के रंगमहल में राधा जी के श्रृंगार के लिए रात्रि में रखे गए श्रृंगार की वस्तुएं सुबह रंगमहल खोलने पर खत्म या कम हो जाती हैं। ऐसा लगता है कि रात को किसीने श्रंगार किया था। शयन सैया पर जो चादर घरी करके रखा जाता है वह ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसीने रात को इस चादर का इस्तेमाल किया है। पीने के लिए रखा हुआ पानी लोटे में कम या बिलकुल नहीं मिलता। कहा जाता है कि रंगमहल वही स्थान है जहां भगवान रस के बाद अपनी थकान मिटाने के लिए राधा रानी के साथ आराम किया करते थे। [ दृष्टिहीन मुस्लिम ल़डकी को कंठस्थ है श्रीभागवत गीता] [ अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
मंदिर पुजारी भीकचन्द गोस्वामी कहते हैं कि निधि वन में जितने भी पेड़ हैं वो एक दूसरे से इस तरह लिपटे हुए हैं मानो कोई परस्पर अपनी बाहों में लिए हुए हों। कहा जाता है कि रात्रि में यही पेड़ कृष्ण और गोपियां का रूप धारण करते हैं और रास करते हैं। निधिवन में आज भी भगवान के जगह-जगह चरण चिन्ह देखने को मिलते हैं। निधि वन पूरे देश का केवल एक ऐसा मंदिर है जहां राधा जी को बांसुरी बजाते हुए दिखाया है। इसके पीछे की कथा यह है कि राधा जी को भगवान की बांसुरी से जलन होने लगी थी तो उन्होंने भगवान की बांसुरी को चुरा कर उनसे दूर करना चाहा था। क्योंकि कि जब भगवान अपनी बांसुरी को बजाते थे तो सभी गोप-गोपियां और गाय उस स्थान पर आ जाती थीं। राधा जी बांसुरी की वजह से भगवान कृष्ण के साथ अकेले में समय नहीं बिता पाती थीं। इसीलिए उन्होंने भगवान की बांसुरी को चुराकर ये देखना चाहा कि यदि में भी इस बांसुरी को बजाऊं तो क्या गोप-गोपियां आते हैं या नहीं लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
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