जोधपुर । मारवाड़ में दीवाली पर प्राचीनकाल से लक्ष्मी पूजन की चली आ रही रीती अब लुप्त हो गई है । सन् 1947 से पहले तक लक्ष्मी पूजन के लिए पंडित जी से पूजा स्थल पर मंत्रोचार के साथ भिती चित्र बनवाया जाता था ,कालान्तर तक आते आते इस परम्परा में भी बदलाव आ गए । मारवाड़ में आजादी से पहले तक दिवाली को कहा जाता था कि बहुत दिनों से छोड़ा हमको, अब लक्ष्मी हमारे घर आओ । स्वतंत्रता स्वागत करती है, साथ विष्णु को लाओ । बिराई में 94 वर्षीय ज्यानी देवी पंचारिया बताती है कि हम बचपन इस तरह से टोलियां बनाकर गली गली नारे लगाते थे, लेकिन शादी जल्दी हो गई तो बचपना पीहर में ही छूट गया । ज्यानी देवी कहती है कि दिवाली की पूजा में लक्ष्मी के साथ विष्णु को भी देखा लेकिन बाद में दक्षिण से लक्ष्मीजी के चित्र आने शुरू हुए तो लोगों ने भित्ति चित्र बनवाने ही बंद कर दिए । इस तरह इन चित्रों में लक्ष्मी और गणेश के साथ सरस्वती नजर आते और विष्णु के साथ पूजा की परम्परा खत्म हो गई । पंचारिया कहती है कि मारवाड़ में लक्ष्मी मेहरबान रही और यही कारण भी रहा कि यंहा के लोगों को मारवाड़ी सेठ कहा जाने लगा । अब परम्परा बदली तो लक्ष्मीजी के पूजन का तरीका भी बदल गया जो इन्हें बिलकुल अच्छा नहीं लगता ।
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