भारत की नीति पहले न्यूक्लियर हमला न करने की है। ऐसे में न्यूक्लियर
ट्रायड भारत की जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता को बेहतर बनाएगा। दरअसल,
पहले किए गए परमाणु हमले में शत्रु आपकी न्यूक्लियर मिसाइलों और परमाणु
हमला करने में सक्षम एयरक्राफ्ट्स को निशाना बना सकता है। ऐसे में पानी के
नीचे महीनों तक बिना किसी की नजर में आए परमाणु हमले की क्षमता वाली
पनडुब्बी से जवाबी न्यूक्लियर स्ट्राइक में रोल बेहद अहम और प्रभावशाली हो
जाता है।
सूत्रों ने बताया कि 6000 टन वजन वाला अरिहंत न्यूक्लियर
बलिस्टिक मिसाइलों के साथ पानी के नीचे गश्त पर निकलने के लिए फिलहाल पूरी
तरह से तैयार नहीं है। रक्षा मंत्रालय और नेवी, दोनों ने ही इस मामले पर
कुछ कहने से इनकार किया है। उनके मुताबिक, यह एक सामरिक प्रॉजेक्ट है,
जिसका नियंत्रण सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय के पास है। सूत्रों का कहना है
कि इसमें सबमरीन से लॉन्च की जा सकने वाली बलिस्टिक मिसाइलों के सिस्टम को
लगाने में थोड़ा वक्त लगेगा। इन मिसाइलों को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल
कलाम के नाम पर कोडनेम ‘के’ दिया गया है। इनमें दो तरह की मिसाइलें
लगेंगी। पहली के-15 एसएलबीएम, जिसकी क्षमता 750 किमी है, जबकि दूसरी के-4
जो 3500 किमी दूर तक के लक्ष्य को निशाना बनाने में सक्षम है। अरिहंत को
750 किलोमीटर रेंज वाली के15 और 3,500 किलोमीटर रेंज वाली 4 बलस्टिक
मिसाइलों से लैस किया जाएगा।
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