नई दिल्ली। चाबहार बंदरगाह पर करार करना भारत के लिए बहुत बडी उपलब्धि है, लेकिन यह इतनी आसानी से नहीं मिला है। इसके लिए भारत को काफी तेजी और सूझबूझ के साथ कदम बढ़ाते हुए चीन से लंबी छलांग लगानी पड़ी, क्योंकि यह पड़ोसी देश पाकिस्तान से ग्वादर बंदरगाह पर करार करने के बाद यहां भी नजरें गड़ाए हुए था। इतना ही नहींं, चीन ने भी चाबहार पोर्ट को विकसित करने का ईरान को प्रस्ताव दिया था, मगर भारत ने उसको किनारे धकेल यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर ली, और यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा से संभव हुआ।
चीन का एक प्रतिनिधिमंडल पिछले महीने ही चाबहार मुक्त व्यापार जोन पहुंचा था। इन लोगों ने पोर्ट के साथ-साथ वहां एक इंडस्ट्रियल टाउन बनाने की भी इच्छा जाहिर की थी। चीन के इस प्रतिनिधिमंडल के चीफ को यह कहते हुए भी सुना गया था कि उनके देश की कंपनियां रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जगह पर मौजूद इस पोर्ट को विकसित करना चाहती हैं। इससे पहले चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग भी इस साल जनवरी में ईरान के दौरे पर गए थे। उनके दौरे पर दोनों देशों की ओर से जारी संयुक्त बयान में बंदरगाहों के विकास को आपसी सहयोग का एक अहम मुद्दा बताया गया था।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले साल ईरान के साथ चाबहार पर जो एमओयू (समझौता पत्र) साइन किया था, उसे भी इस पोर्ट में चीन की कंपनी (चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी) की तरफ से दिखाई गई रुचि का जवाब माना जा रहा था। इसी कंपनी के हाथ में पाकिस्तान में बन रहे ग्वादर पोर्ट की कमान है। विश्लेषकों का कहना है कि भारत ने चीन और पाकिस्तान को ग्वादर पोर्ट का जवाब चाबहार से दिया है।
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