अजय पाण्डेय, वाराणसी। नेताजी यानि धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव
अपने पुत्र से नाराज हैं। अब तो लगता है कि वह अपनी बची-खुची इज्जत भी शिवपाल व
अमर सिंह के चलते खो देंगे। ऐसा लगता है कि अब नेताजी जब-जब अखिलेश की कार्यशैली
पर प्रश्नचिन्ह लगाएंगे या विरोध करेंगे तब-तब अखिलेश और मजबूत होते जायेंगे। [@ UP ELECTION: मैनचेस्टर के मतदाताओं को नहीं लुभा पाए निर्दलीय] [@ अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
नेताजी अपनी कार्यशैली या विवशता से जनता और सपा के कार्यकर्ताओं की निगाह में
शिवपाल व अमर संग खलनायक की भूमिका में होते जा रहें हैं और अखिलेश नायक की भूमिका
में। अखिलेश ने जिस तरीके से अपनी पार्टी के माफियाओं का टिकट काटा है वैसे ही अब
इन सभी के वरदहस्त शिवपाल का टिकट भी काट ही देना चाहिए था ताकि यह सन्देश जा सके
कि धारा के विपरीत जाने पर अब किसी को भी बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।
वैसे भी कानून या नियम तभी प्रभावी होता है जब हर एक पर समान रूप से लागू हो।
समाजवादी पार्टी व कांग्रेस दोनों दलों को एक दूसरे की आवश्यकता है और इसी गठबंधन
की बदौलत ही अखिलेश पुनः मुख्यमंत्री बन सकते हैं। कांग्रेस अपने सर्वाधिक तीखे
वार "27 साल यूपी बेहाल" को खुद ही कुन्द करके शरीक-ए-हयात बन चुकी है
और अखिलेश ने भी "काम बोलता है" को भोथरा कर कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर
लिया।
इससे जनता के बीच यही संदेश गया कि काम नहीं "जुगाड़ बोलता है"।
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