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Punjab Election नोटबन्दी के कारण रंगहीन चुनाव, परेशान उम्मीदवार

Due to demonetisation election is colourless, candidat in trouble - Amritsar News in Hindi

नरेंद्र शर्मा
चंडीगढ़। कभी चुनाव राष्ट्रीय पर्व के तौर पर मनाया जाता था। शहर, मौहल्ले, गलियां यहां तक की लोगों के घर भी चुनावी रंग में रंग जाते थे। परन्तु इस बार एक तो चुनाव आयोग की चील जैसी दृष्टि और उसपर नोट बंदी का कहर। न कही झंडा-डंडा, न बैनर न होर्डिंग, ना ही कहीं शामियाने, न उमीदवारों का प्रचार करते स्पीकर,न रैलियंा, न मीटिंग और न ही रात की महफिलें, सब ओर सन्नाटा है। चुनाव विशेषज्ञों का कहना है की चुनाव आयोग की कड़ाई के चलते पिछले विधानसभा चुनाव में 250 से 300 करोड़ रूपये खर्च हुए थे।

यह खर्च चुनाव प्रबन्धों पर और रैलियों पर हुआ था। परन्तु इस बार नोटबंदी के कारण कुछ भी नहीं हो पा रहा है। केवल चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी घर-घर जाकर मतदाता से सम्पर्क बनाने में लगे हुए हैं। उनमें घवराहट है। क्योंकि उनका पूरा चुनावी गणित ही गडबडा हो चुका है। प्रत्याशियों के लिए छोटे से छोटा खर्च भी परेशान करने वाला प्रमाणित हो रहा है। कैश की कमी के चलते छोटे-छोटे काम नहीं हो पा रहे हैं या लेट हो रहे हैं। यहां तक चैक से पेमेंट करने का प्रश्न है उसमें दिक्कतें आ रहे हैं।

आयोग के निर्देश अनुसार बीस हजार से अधिक की पेमेंट केवल चेक से ही की जा सकती है। उम्मीदवार इसके लिए तैयार हैं। उनके पास चेक की भी कमी नहीं है। परन्तु पेमेंट लेने वाला चेक लेने में आनाकानी कर रहा है। क्योंकि चेक से पेमेंट लेने पर एक तो उसे बैंक जाना पड़ता है दूसरा उस पर टैक्स देना पड़ता है। इसलिए वह चेक लेने से ही परहेज कर रहा है। वैसे उम्मीदवार भी चेक से पेमेंट करने से परहेज करते हैं क्योंकि चेक से की गई पेमेंट्स उसके खर्च खाते में जमा हो जाती हैं।

इन झंझटों से बचने के लिए आनलाइन ट्रांजेक्शन और कार्ड स्वेपिंग से पेमेंट की प्रवृति बड़ी है। परन्तु इससे भी पैसा मजदूरी करने वाले के हाथ में नहीं आता है और बैंक में चला जाता है। जिससे उसे बाद में अपना पैसा बैंक से वापिस लेने में दिक्कत आती है। आम तौर पर देखा जाता था की चुनाव लडऩे वाला उम्मीदवार अपने क्षेत्र में ऑफिस खोला करता था। परन्तु इस बार उमीदवारों के ऑफिस गायब हैं। कहीं कहीं ऑफिस नजर आता है।

क्योंकि यदि उम्मीदवार कोई ऑफिस खोलता है तो उसके खर्चे उसके खर्चों में जुड़ जाते हैं। जो ऑफिस खोले भी गए हैं उनमें भी अन्यत्र ही सादा खाना बन रहा है। नोटबंदी के कारण चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशी दुखी हैं। परन्तु क्या करें उनकीं समझ में नही आ रहा है। इसका प्रमाण भाजपा के एक पूर्व मंत्री के बयान मिलता है। इस मंत्री साहब ने एक जनसभा में बोलते हुए कहा की नोटबन्दी में उसका कोई हाथ नही है। इसकी सजा कहीं उसे न दे दीजिएगा।

चुनाव प्रत्याशियों का कहना है की पैसे निकलने की निर्धारित सीमा सबसे बड़ी परेशानी का कारण बन रही है। चौबीस हजार की निकासी सीमा होने के कारण बैंकों में से पैसा नही निकल पा रहा है। राज्य के चुनावों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है की नोटबन्दी का सबसे बड़ा फायदा यह होने वाला है की इस बार उमीदवारों के लिए नकदी बांटना कठिन हो गया है। क्योंकि उनके पास नकदी की भारी कमी है।

चुनाव आयोग के भय से कोई भी प्रत्याशी भारी संख्या में अपने पास नकदी रखने से परहेज करेगा। यह भी कहा जा रहा है की इन चुनावों में कुछ हद तक नोटबन्दी का प्रभाव नशाखोरी पर भी अवश्य पड़ेगा। वैसे तो मतदाताओं को भरमाने के लिए शराब की पर्चियों का चलन पहले से ही है। इसी प्रकार अब नकद के स्थान पर यह प्रत्याशी समान से अपना काम चला लेंगे।

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Web Title-Due to demonetisation election is colourless, candidat in trouble
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