Exclusive । उमाकांत त्रिपाठी । दिल्ली । तमाम कोशिशों के
बावजूद रक्षा क्षेत्र में अगर निवेश नहीं हो पा रहा है तो ये सरकार के लिए
चिंताजनक है साथ उस नीति निर्धारण पर भी सवाल है जो बार बार एफडीआई को लेकर
कहा जाता रहा है। दरअसल सरकार तो चाहती है कि रक्षा क्षेत्र में निवेश हो लेकिन
इसके नहीं होने के पीछे कई ऐसे तत्व जिम्मेवार है जिसकी समीक्षा होना जरूरी
हो गया है। देश में रक्षा उत्पादन में तेजी लाने के लिए डीआरडीओ और आर्डिनेंस
फैक्ट्री बोर्ड को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर हथियार निर्माण की इजाजत देने का
प्रस्ताव है।
योजना यह है कि डीआरडीओ की तकनीक, आडिर्नेंस फैक्ट्रियों
के ढांचे और निजी क्षेत्र के निवेश से न सिर्फ देश की जरूरत के लिए हथियार बनाए
बल्कि उन्हें दूसरे देशों को बेचा भी जाए। तमाम प्रयासों
के बावजूद रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश नहीं आ पा रहा है। निजी क्षेत्र भी
अकेले बड़े निवेश के पक्ष में नहीं है। लासंन एंड टुब्रो, महेन्द्रा,
रिलायंस,
टाटा
आदि कंपनियों की तरफ से दिचलस्पी तो दिखाई गई है, पर वह कुछ ही
क्षेत्रों में सीमित है। जबकि सरकार चाहती है कि हर रक्षा सामग्री देश में निर्मित
हो।
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