चंडीगढ़। क्या पंजाब के भाजपा नेताओं ने केंद्रीय मंत्री व प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष विजय सांपला का भविष्य भांप लिया है? क्या पंजाब विधानसभा चुनाव परिणाम भाजपा के लिए सुखद नहीं रहेंगे? यह 11 मार्च को साफ हो पाएगा, लेकिन लगता यही है कि भाजपा नेताओं ने स्थिति का आकलन पहले ही कर लिया है। सांपला की तरफ से बुलाई गई बैठक में गिने-चुने मंत्रियों, विधायकों, चेयरमैनों और पार्टी पदाधिकारियों की मौजूदगी को कोई संकेत माना जाए तो कह सकते हैं कि आने वाले दिन अच्छे नहीं हैं। [# सावधान हो जायें अब भ्रस्ट अफसर] [# अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
अकाली दल के साथ समझौते के तहत भाजपा को पंजाब की 117 सीटों में से पहले की तरह इस बार भी 23 सीटें मिली थीं। पिछले चुनाव में भाजपा 12 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। दस साल से अकाली-भाजपा गठबंधन के सत्ता में रहने की वजह से इस चुनाव में भाजपा की स्थिति कमजोर मानी जा रही थी। टिकट बंटवारे को ले कर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सांपला नाखुश थे। मोबाइल का स्वीच आॅफ कर उनके अज्ञातवास में चले जाने की खबरें आने लगी थीं। उनके इस्तीफे की चर्चाएं भी चल निकली थीं, लेकिन बाद में उन्होंने साफ किया कि चुनावी व्यवस्तता के चलते वे मोबाइल पर लोगों से संपर्क नहीं कर पाये।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का सवाल ही पैदा नहीं होता। कहते हैं कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से बातचीत के बाद उलटी-सीधी चर्चाओं पर उन्हें सफाई देनी पड़ी थी। चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को यह लगने लगा था कि भाजपा एकजुट नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लुधियाना और जालंधर में आयोजित रैलियों को भी लोगों का कोई खास उत्साहजनक समर्थन नहीं मिला। चुनाव के बाद सांपला की तरफ से बुलाई गई पार्टी की पहली बैठक के प्रति भी मंत्री-विधायक उदासीन नजर आये।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि पंजाब में चुनाव परिणाम अगर उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे तो सांपला को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि सांपला से प्रदेश अध्यक्ष पद छिनता है या केंद्रीय मंत्री का पद। सांपला अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखते हैं। पंजाब में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की तादाद 31 फीसदी से ज्यादा है, इसी वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारों के फायदे में सांपला को केंद्रीय मंत्री के साथ प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया गया था। भाजपा का यह फैसला कितना सही रहा, यह चुनाव परिणाम आने के बाद ही साफ हो पाएगा।
लेकिन पंजाब भाजपा के नेताओं से हकीकत शायद छुपी नहीं है। बैठक के दौरान खाली पड़ी रही कुर्सियों ने तस्वीर और साफ कर दी है। बैठक में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी समारोह के आयोजन के लिए 260 नेताओं को आमंत्रित किया गया था, इनमें मंत्री, विधायक, चेयरमैन, पार्टी पदाधिकारी, विभिन्न प्रकोष्ठों के अध्यक्ष आदि शामिल थे। पंजाब भाजपा मामलों के प्रभारी प्रभात झा भी हालात को देखते हुए निराश नजर आये।
अकाली-भाजपा गठबंधन में पार्टी के चार मंत्री हैं। इनमें से अनिल जोशी, चुनीलाल भगत, सुरजीत ज्याणी बैठक में नहीं आये। मदन मोहन मित्तल जरूर बैठक में मौजूद थे, लेकिन भाजपा आलाकमान ने इस बार उन्हें टिकट ही नहीं दिया। तीन-चार उम्मीदवारों को छोड़ कर बाकी ने बैठक की कोई परवाह नहीं की। जिला अध्यक्षों की तादाद भी छह तक सीमित रही। बैठक में पार्टी नेताओं की गैर हाजरी पर सांपला का कहना है, चुनाव में व्यस्त रहे नेता लोग शायद कहीं सुस्ताने चले गए होंगे।
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