उमाकांत त्रिपाठी से फिल्म मेकर और ऑथर सैयद जैगम इमाम की बातचीत [@ यहां मरने के बाद भी होती है शादी, मंडप में दूल्हा-दुल्हन...]
सिनेमा, संघर्ष और सफलता इन तीनों का आपसी रिश्ता कुछ ऐसा है कि बिना एक के बाकी दो अधूरे हैं। बिना किसी गॉडफादर के सिनेमा जगत में अपनी जगह बनाना आज के समय में बहुत बड़ी बात है। ऐसे ही अपने कठिन संघर्षों से फिल्म मेकर और ऑथर सैयद जैगम इमाम ने ना ही सिर्फ सिनेमा जगत में अपनी जगह बनाई है बल्कि अपनी दूसरी फिल्म अलिफ के साथ आ रहे हैं। इनकी फिल्म और संघर्षों को लेकर खास खबर के नेशनल अफेयर्स एडिटर उमाकांत त्रिपाठी ने इनसे बातचीत की। पेश है बातचीत के कुछ खास अंश-
सवाल- अपनी आने वाली मूवी अलिफ के बारे में कुछ बताइये
जवाब - अलिफ, उर्दू अरबी और फारसी का पहला अक्षर होता है। इसका एक मतलब शुरुआत भी होता है। मूलत: ये फिल्म मुस्लिम शिक्षा के ऊपर है जो कि उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित करती है। जिसकी टैग लाइन है कि लडना नहीं पढना जरूरी है। किसी भी हाल में आप पढि़ए। ये मुस्लिम समाज में उस तबके की बात करती है जिसके बारे में भारतीय सिनेमा में अभी तक कोई बात नहीं हुई है। जो पढ़ाई को लेकर जागरुक नहीं है लेकिन उसकी जरूरत है। शिक्षा एक ऐसी चीज है जिससे आप दूसरे इंसान, समाज सोशायटी को समझ पाते हैं और एक नागरिक के तौर पर अपना योगदान दे पाते हैं। इसलिए शिक्षा जरूरी है ताकि हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकें।
सवाल - इस सब्जेक्ट पर मूवी बनाने के बारे में दिमाग में कैसे आया
जवाब - मेरी पहली फिल्म दोजख थी जो कि पीवीआर में रिलीज हुई थी और काफी सफल भी रही। जिसके बाद मेरे ऊपर इस बात का दबाव था कि मैं कॉमर्शियल फिल्में बनाऊं। व्यक्तिगत तौर मेरा यह मानना रहा है कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं है। इस विधा के जरिए समाज को कुछ दिया जाना चाहिए, समाज को सुधारने का काम किया जाना चाहिए। ईरान जैसे देशों में इस तरह का सिनेमा बन भी रहा है जिससे लोग प्रेरित हों। अलिफ की कहानी मेरे दिमाग में बहुत पहले से थी। मैं वाराणसी का रहने वाला हूं तो वहां मैने मदरसे में बच्चों को शिक्षा लेते देखा है जिनका ज्यादा रुझान मजहबी शिक्षा की तरफ होता है। लेकिन वो उस शिक्षा से वंचित रह जाते हैं जिससे वो एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकें क्योंकि उनमें जागरुकता नहीं होती। इस तरह एक ऐसा सब्जेक्ट दिमाग में आया जिससे कि रुढि़वादिता पर चोट की जा सके और उस तबके में जागरुकता लाई जा सके।
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