वाराणसी।बाबा विश्वनाथ और माँ अन्नपूर्णा
के असीम अनुकम्पा प्राप्त काशी में इस महापर्व धनतेरस से अन्नकूट तक लगातार चार
दिनों तक काशी वासियों के साथ साथ स्वयं विश्व के नाथ यानि बाबा विश्वनाथ स्वयं
माँ की आराधना में तल्लीन रहेंगे ।
काशी पाण्डित्य
परम्परा के अग्रणी संवाहक पण्डित श्री धर पाण्डेय जी के अनुसार इस वर्ष धनतेरस पर
अत्यन्त अद्भुत संयोग बन रहा है जो आश्चर्य जनक फलदायक होगा,इस शुभ अवसर पर
लक्ष्मी गणेश पूजन बहुत लाभ कारी होगा,क्योंकि वर्षों के बाद हस्त
नक्षत्र-अमृतयोग का बहुत लाभदायक संयोग बन रहा है ।
आयुर्वेद के पिता धनवन्तरी की जयन्ती भी
धनतेरस को ही मनाया जाता है ।चिकित्सा कार्यों में लगे हुए व्यक्तियों के यह दिन विशेष
महत्व का होता है, चिकित्सक धनवन्तरी जी का पूजन ध्यान कर उनका आशीर्वाद प्राप्त
करते हैं जो उन्हें यश एवं कीर्ति प्रदान करने वाला होता है ।मय दानव की पूजन भी
इस अवसर पर की जाने की परम्परा उत्तर भारत में रही है,एक दीप मय दानव के
नाम पर रखने की परम्परा है।मन्दोदरी के पिता एवं लंकेश के श्वसुर मय एक शिल्पकार
के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने लंका के शानदार भवनों के निर्माण के अलावा
महाभारत कालीन जल-थल के रूप में विस्तृत कर देने वाले भवन का भी निर्माण किया
था।अतः इस महान गुणी शिल्पी को सम्मान देने के उद्देश्य से एक दीप दान कर याद करने
की प्राचीन परम्परा रही है ।
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