लखनऊ| उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान पश्चिमी उप्र की सियासत में सबसे अहम मानी जाने वाली राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) अपने पुनरुत्थान की तलाश में चुनावी बैसाखी की आस लगाए बैठी है और संभावित सपा-कांग्रेस गठबंधन में अपने सीटों का हिसाब-किताब लगाने में जुटी हुई है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि पिछले चार चुनावों में उसके प्रदर्शन पर नजर डालें तो सहयोगियों के साथ चुनाव मैदान में उतरना भी उसके लिये फायदे का सौदा साबित नहीं हुआ। [@ दुनिया की शीर्ष 5 तोपों में शामिल हुई ‘धनुष’, दमखम में बोफोर्स से भी आगे]
वर्ष 1996 के चुनाव में हालांकि रालोद ने समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ा था। गठबंधन के तहत उन्हें 38 सीटें मिली थीं, लेकिन रालोद के केवल आठ उम्मीदवार ही जीतने में ही कामयाब हो पाए।
इसके बाद 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में रालोद ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। इस बार भी उसे गठबंधन के तहत केवल 38 सीटें ही मिलीं, लेकिन इस बार उसने पिछले चुनाव की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन किया। उसके 14 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की।
उप्र में 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में रालोद ने अकेले ही 254 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 10 विधानसभा सीटों पर उसके उम्मीदवार जीते थे। पार्टी को कुल 3़70 प्रतिशत मत मिला था।
इसके बाद 2012 में हुए चुनाव में रालोद का गठबंधन कांग्रेस के साथ हुआ था। इसके तहत उसने 46 सीटों पर चुनाव लड़ा और 9 सीटों पर विजय हासिल की।
पश्चिमी उप्र की सियासत को नजदीक से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार नरेश उपाध्याय बताते हैं कि रालोद का `पुनरुत्थान` जब भी होगा अपने दम पर ही होगा। रालोद यदि गठबंधन से हटकर उप्र में अपने बूते पूरी सीटों पर चुनाव लड़े, तो ज्यादा फायदा होगा और इससे सपा और भाजपा को भी नुकसान होगा।
उन्होंने कहा, रालोद अपने पुनरुत्थान की तलाश में बैसाखी ढूंढ़ रही है, लेकिन मुझे लगता है कि उसे अपने दम पर पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ना चाहिये। इससे दो फायदे होंगे। एक तो वह अपने मत प्रतिशत में सुधार कर सकती है और दूसरी बात यह है कि पश्चिमी उप्र से लेकर पूर्वाचल तक उसका संगठन खड़ा हो जाएगा।"
इस बीच, रालोद के सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस ने रालोद को 21 सीटें देने का प्रस्ताव रखा है। लेकिन राष्ट्रीय महासचिव जयंत सिंह ने यह कहकर साफतौर पर इंकार कर दिया है कि पिछले चुनाव में 9 सीटों पर रालोद जीती थी और 12 सीटों पर उनके प्रत्याशी दूसरे नम्बर पर रहे थे। इस हिसाब से 21 सीटें तो उनकी हैं ही। इन सीटों के अलावा उन्होंने पश्चिमी उप्र में 15 और ऐसी सीटों की मांग की है, जहां रालोद की स्थिति अच्छी है।
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