फिल्म : वीरप्पन
निर्माता/ निर्देशक : राम गोपाल वर्मा
कलाकार : संदीप भारद्वाज, लीजा रे, उषा जाधव, सचिन जोशी
सैंकडो मीटर ऊंचाई से जैसे ही कैमरे ने पेडों के मध्य गुजरती रेतीली पत्थरीली जमीन पर रेंगती पुलिस गाडियों को परदे पर दिखाना शुरू किया उसी से अहसास हो गया एक दशक बाद रामगोपाल वर्मा की वापसी हुई है। यह सही है कि वापसी हुई है लेकिन उस क्लासिक आरजीवी की नहीं जिसने बॉलीवुड को ‘शिवा’, ‘सत्या’, ‘कम्पनी’, ‘रंगीला’, ‘भूत’, ‘सरकार’, ‘सरकार राज’ जैसी फिल्में दी हैं। स्याह अंधेरे के साथ परदे पर पीली रोशनी में दिखाई देने वाले दृश्य, अदाकारों की भावाभिव्यक्ति और संवादों का अभाव, बैकग्राउण्ड में गूंजता लाउड संगीत दृश्य की प्रभावशीलता को बढ़ाता और दर्शकों में यह उत्सुकता जगाता हुआ अब आगे क्या होगा? ऐसा है वीरप्पन का जादू।
साउथ में सुपर हिट हो जाने के बाद रामगोपाल वर्मा ने अब हिन्दी में लौटे है। उन्होंने अपनी ही कन्नड फिल्म किलिंग वीरप्पन को थोडे फेरबदल के साथ हिन्दी में पेश किया है। सत्य घटनाओं और रियलिस्टिक किरदारों को लेकर फिल्म बनाने के प्रति निर्देशक रामगोपाल वर्मा की दिलचस्पी और प्रेम जगजाहिर है। अंडरवर्ल्ड और क्रिमिनल किरदारों पर फिल्में बनाते समय जब रामगोपाल वर्मा अपराधियों के मानस को टटोलते हैं तो अच्छी और रोचक कहानी कह जाते हैं। फिल्म की कहानी है वीरप्पन की। दक्षिण भारत का कुख्यात डाकू, जो चंदन की तस्करी, हाथियों का अवैध शिकार, पुलिस और वन्य अधिकारियों की हत्या व अपहरण के कई मामलों का भी अभियुक्त था।
कहानी :-
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