नई दिल्र्ली। विशेषज्ञ कहते हैं कि मोटापे का बच्चों की सेहत के साथ ही साथ
उनके मनोविज्ञान पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। बचपन का ‘बुढ़ापा’ एक ऐसी
स्थिति है, जिसमें बच्चों का वजन उनकी उम्र और कद की तुलना में काफी ज्यादा
बढ़ जाता है। भारत में हर साल बच्चों में मोटापे के एक करोड़ मामले सामने
आते हैं। इस स्थिति को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन इलाज काफी
हद तक मदद कर सकता है।
शरीर में वसा (फैट) जमने का सीधे तौर पर पता
लगाने के तरीके कठिन हैं। मोटापे की जांच प्राय: बीएमआई पर आधारित होती है।
बच्चों और किशोरों के लिए, ज्यादा वजन और मोटापे को बॉडी मास इंडेक्स
(बीएमआई) उम्र और लिंग विशेष के लिए नोमोग्राम का प्रयोग करके पारिभाषित
किया जाता है।
बच्चों में मोटापे और सेहत पर इसके प्रतिकूल प्रभावों
के बढ़ते प्रचार के कारण इसे एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप
में मान्यता दी जा रही है। बच्चों में अक्सर ही मोटे के स्थान पर ज्यादा
वजन शब्द का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह उनके और उनकी मनोवैज्ञानिक
स्थिरता के लिए कम निंदित लगता है।
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