श्रीगणेश जी हिन्दुओं के मांगलिक कार्यो में प्रथम आराध्य देव हैं।
प्रत्येक शुभ काम का प्रारंभ श्रीगणेशजी के निमंत्रण से होता है। प्रत्येक
पूजा में सर्वप्रथम श्रीगणेशजी का ही स्मरण और पूजन किया जाता है। श्रीगणेश
जी की प्रतिमा अनेक रूपों में और अनेक प्रकार से लौकिक रूप से स्वीकार की
जाती है। सुपारी या साबुत हल्दी पर मौली का धागा लपेटकर और सिंदूर व वर्क
से चोला चढाकर भी गणेश प्रतिमा बनाई जाती है।
इसके अतिरिक्त
रवि-पुष्य योग या गुरू-पुष्य योग में, सफेद आकडे के पौधे की जड को शुद्ध
करके और सिंदूर का लेप करके भी गणेश प्रतिमा बनाई जाती है। श्वेत आकडे की
जड से निर्मित (शुद्ध मुहूर्त में) प्रतिमा व्यापार वृद्धि और आय वृद्धि
में बहुत ही सहायक होती है।
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