व्यवहार कुशलता के लिए निरहंकारिता का होना भी आवश्यक है । मनुष्य की यह एक मानसिक कमजोरी है कि वह अपने शरीर, स्वरुप, धन, वैभव, विद्या, संपन्नता, कीर्ति आदि का गर्व करके अपने बड़प्पन और अहंकार के समक्ष दूसरों को तुच्छता की दृष्टि से देखता है । यह अव्यावहारिक एवं तुच्छता का चिन्ह माना गया है । संसार में एक से एक बड़े धनी मानी, संपन्न, विद्वान-योग्य बैठे हुए हैं । फिर किस बात की अहमन्यता ! इस प्रकार की अहंकारिता प्रगतिशीलता के मार्ग को अवरुद्ध कर देती है और मनुष्य को आगे नहीं बढऩे देती । साथ ही इस प्रकार का अहंकार समाज में सम्मानास्पद न माना जाएगा । उसके कारण दूसरे असंतुष्ट होंगे और उदास होकर असहयोग करने लगेंगे । इसलिए मिथ्या अहंकार का त्याग कीजिए। अपनी योग्यता, संपन्नता आदि को छोटा मानकर और वृद्धि के लिए प्रयत्न कीजिए, अहंकार शून्य होकर दूसरों को बड़प्पन, महत्व प्रदान कीजिए, इसी में आपका भी बड़प्पन और महत्व है । ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
निरहंकारिता के लिए आवश्यक है कि दूसरों के दृष्टिकोण का आदर एवं सम्मान करना सीखा जाए । कोई उत्तम बात कहे तो उसे स्वीकार करना ही चाहिए, किंतु अन्य कोई व्यक्ति अपनी हठधर्मी एवं अहमन्यतावश अपने गलत दृष्टिकोण पर भी जोर दे रहा हो तो उस समय उसका भी सम्मान कीजिए और सद्भावना प्रकट कीजिए, फिर एकांत में उससे मिलकर विचार-परामर्श कीजिए । वह अपने गलत दृष्टिकोण को वापस लेकर आपका सहयोगी बन जाएगा । अत: दूसरों के दृष्टिकोण का आदर कीजिए।
बरबस, जबरन आपका सही दृष्टिकोण भी किसी पर थोपने की चेष्टा न कीजिए । यह भी अहंकार वृत्ति का सूचक है । आप केवल नम्रता भरे शब्दों में अपना सुझाव एवं राय दे सकते हैं । उस पर आप भी व्यक्तिगत कोई जोर न दें । दूसरे व्यक्तियों को तर्क से आप के विषय अथवा सुझाव को मानने दीजिए। इस प्रकार की वृत्ति सफल जीवन एवं दूसरों के सहयोग और मित्रता की वृद्धि करती है ।
अनावश्यक उपदेश देने का प्रयत्न भी मत करिए, समाज आपसे जबरन उपदेश ग्रहण नही करेगा, न उसका आदर ही करेगा । आप अपना सुझाव और विचार पेश कीजिए, जनता को तर्क एवं विचार बल से उस पर अमल करने दीजिए ।
दूसरों के साथ अनधिकार चेष्टा करना भी अहंकार में ही सम्मिलित है । बिना मतलब, अपनी योग्यता का प्रदर्शन करने के लिए या दूसरों को अपने कार्य में अयोग्य समझते हुए अनावश्यक हस्तक्षेप मत कीजिए । इसे प्रतिपक्षी लोग कभी अच्छा न समझेंगे और आपके प्रति उनके विचार अच्छे न होंगे ।
आवश्यकता से अधिक न बोलिए । ज्यादा बोलना मूर्खता एवं घमंड का प्रदर्शन करना है। बातूनी, शेखीखोर, टीपटाप लगाकर बोलने वाला व्यक्ति घटिया दर्जे का माना जाता है । ऐसा व्यक्ति काम भी कम करता है, अत: इतना बोलिए, जो अवश्यक हो, जिससे आपका तथा दूसरों का कुछ हित साधन हो सके । बेकार बकवास करने से आपके व्यक्तित्व का मूल्य घट जाएगा और आपकी शक्तियों का क्षय होगा ।
उपरोक्त प्रवचन पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक हम बदलें तो दुनिया बदले के पृष्ठ 144 से लिया गया है।
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