बॉन। दो सप्ताह तक चलने वाला संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन वार्ता दिशाहीन नतीजों के साथ शुक्रवार को समापन पर पहुंची। अक्षय ऊर्जा की तरफ सुचारु ढंग से बढऩे के मद्देनजर विकसित देशों की ओर से विकासशील देशों को धन प्रदान करने के मसले पर जलवायु विशेषज्ञों के बीच अभी भी विवाद बना हुआ है। विकासशील देशों के एक प्रतिनिधि वार्ताकार ने बताया ,‘‘बड़ा सवाल है कि पेरिस जलवायु समझौते के तहत धनी देशों की ओर से कितना पैसा गरीब देशों को दिया जाएगा। इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण समय है, कब दिया जाएगा।’’ उन्होंने बताया कि ये सब मूल प्रश्र हैं जिनको लेकर 197 देशों के वार्ताकार उलझे हुए हैं और सम्मेलन समाप्त होने जा रहा है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
वाशिंगटन स्थित वल्र्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट के सस्टेनेबल फायनेंस सेंटर में क्लाइमेट फायनेंस एसोसिएट निरंजली मनेल अमेरासिंघे ने आईएएनएस को बताया, ‘‘विकसित देश पहले ही 2020 विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर सालाना देने को सहमत हो चुके थे। यह धन विकासशील देशों को निम्र कार्बन उत्सर्जन प्रौद्योगिकी अपनाने और जलवायु असर के लिए उनको तैयार करने में मदद के लिए देने की बात थी। ’’
भारत समेत विकासशील देशों के लिए 2020 के पहले की जलवायु कार्ययोजना को लेकर एक बड़ी उपलब्धि की बात यह थी कि दुनिया के विकसित देश बाद के दो वर्षों में भी इस विषय पर बातचीत को राजी थे। भारत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि विकासशील देशों को वित्तीय मदद, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करने के प्रावधान संकटपूर्ण हैं। जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में गुरुवार को मंत्रियों की उच्चस्तरीय बैठक में उन्होंने कहा, ‘‘हमें कार्रवाई करने के लिए हमेशा वैज्ञानिक रिपोर्ट की प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं है। ’’
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