मुंबई। आदित्यनाथ योगी जैसे (उग्र) चेहरे को उत्तर प्रदेश की सत्ता सौंपने का भाजपा का फैसला शेयर मार्केट को रास नहीं आता दिख रहा है। सोमवार को बाजार खुलने के बाद दलाल स्ट्रीट में चिंता का भाव दिखाई दिया और विदेशी निवेशकों की ओर से बड़े पैमाने पर बिकवाली की आशंका के मद्देनजर ज्यादातर कारोबारियों ने हाथ खींच लिए। ऐसे में दोपहर डेढ़ बजे सेसेंक्स 149.07 और निफ्टी 40.50 अंक नीचे गिरकर कारोबार कर रहे थे।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा की शानदार जीत से बाजार को भरोसा हुआ था कि केंद्र में भाजपा सरकार 2019 में भी वापसी होगी, इसी से उत्साहित घरेलू शेयरों ने पिछले सप्ताह 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ नई ऊंचाई छू ली थी। उधर, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में बढ़ोतरी के ऐलान से भी निवेश भारतीय बाजार की ओर लौटे। लेकिन, भाजपा की ओर से उग्र माने जाने वाले अपने सांसद आदित्यनाथ को देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिए जाने से बाजार ऊहापोह की स्थिति में आ गया। आर्थिक गतिविधियों पर गहरी नजर रखने वाले और दलाल स्ट्रीट के पूर्व दिग्गज फंड मैनेजर रितेश जैन ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश सीएम के चयन को लेकर मैं भी उतना ही उलझन में हूं जितना और कोई। वह (योगी) ऐसे नेता हैं जिन्हें अपनी विकासोन्मुखी छवि बनानी है। अभी तो राज्य स्तर पर भी उनकी छवि ऐसी नहीं है।’ जैन ने कहा कि राज्य के तौर पर यूपी कई मूलभूत पैमानों पर पिछड़ा हुआ है। ऐसा नहीं है कि भाजपा में राज्य की समस्याओं को समझने और इसका समाधान करने की कुव्वत वाले नेता नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘इससे मार्केट निश्चित रूप से निराश होगा।’ हालांकि, उनका मानना है कि जो निवेशक भारत को अच्छी तरह समझते हैं, वे परफॉर्मेंस का इंतजार करेंगे।
पिछले सप्ताह के अंतिम कारोबारी दिन शुक्रवार को बीएसई सेंसेक्स 702 अंक या 2.42 प्रतिशत उछलकर 29,648 अंक पर जबकि निफ्टी ने 225 पॉइंट्स यानी 2.52 प्रतिशत चढक़र 9,160 अंक पर बंद हुआ था, लेकिन सोमवार को बाजार में आई गिरावट को विश्लेषक योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी से जोडक़र देख रहे हैं। मार्केट के जानकार पंकज शर्मा ने कहा कि भाजपा की जीत से आर्थिक सुधारों को गति मिलने की जो उम्मीद बंधी थी, आदित्यनाथ योगी की नियुक्ति से उस पर पानी फिरता नजर आ रहा है। उन्होंने कहा, चूंकि आदित्यनाथ योगी की छवि उग्र हिंदूवादी की है, इसलिए नकारात्मक भावना महसूस की जा सकती है। दरअसल, सवाल यह है कि अगर बीजेपी का एजेंडा सच में ‘सबका साथ, सबका विकास’ है तो क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कट्टर सोच वालों को हमेशा हाशिये पर रख पाने में सक्षम होंगे?’
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