बलवंत तक्षक,चंडीगढ़।
पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल शिरोमणि अकाली दल के सर्वेसर्वा हो
गए हैं। अकाली दल की कमान पहले से ही सुखबीर के पास थी, अब वे विधायक दल
के नेता भी चुन लिए गए हैं। पंजाब विधानसभा के भीतर और बाहर, अकाली दल में
वही होगा, जो सुखबीर बादल चाहेंगे।
पंजाब के मुख्यमंत्री रहते
प्रकाश सिंह बादल ने अपनी देखरेख में सुखबीर बादल को अकाली दल का अध्यक्ष
बनवा दिया था। उन्हें उप मुख्यमंत्री की कुर्सी भी दे दी गई थी। यह सारी
प्रक्रिया बड़े सहज तरीके से पूरी कर ली गई थी। विधानसभा के पिछले चुनावों
में अकाली-भाजपा गठबंधन को सत्ता में लाने का श्रेय भी सुखबीर के खाते में
ही दर्ज किया गया था।
अकाली-भाजपा गठबंधन के लगातार दूसरी बार सत्ता
में आने पर भाजपा नेताओं की इच्छा थी कि बड़े बादल के मुख्यमंत्री रहते उप
मुख्यमंत्री की कुर्सी सहयोगी पार्टी भाजपा को दी जाए। सार्वजनिक तौर पर भी
भाजपा अपनी इस इच्छा का प्रकटावा करती रही है, लेकिन बादल ने इस मांग पर
कभी गौर नहीं किया। न भाजपा नेताओं के आग्रह को बादल ने स्वीकार किया और न
उनकी नाराजगी पर कभी कोई चिंता जाहिर की। जब उप मुख्यमंत्री बनाने की बारी
आई तो उन्होंने अपने बेटे सुखबीर बादल को शपथ दिला दी। भाजपा नेता देखते रह
गए।
लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद नरेंद्र
मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर ऐसी चर्चाएं चल निकलीं थीं कि पंजाब में
भाजपा अपने बलबूते पर विधानसभा चुनाव लड़ सकती है। अकाली दल से भाजपा के
नाता तोड़ लेने की अटकलें राजनीति के गलियारों में तैरती रहीं। पूर्व सांसद
नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी, नवजोत कौर सिद्धू, जो बादल सरकार में
मुख्य संसदीय सचिव थीं, भाजपा को अकाली दल से अलग कराने की कोशिशों में
जुटे रहे, लेकिन पार्टी आलाकमान ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।
सिद्धू
अकाली दल के भाजपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ने के खिलाफ थे। राज्यसभा में
भेजे जाने के बावजूद भाजपा से इस्तीफा दे कर अलग हुए सिद्धू किसी सूरत में
अकाली दल से चुनावी गठबंधन नहीं चाहते थे। सिद्धू और उनकी पत्नी भाजपा छोड़
कर कांग्रेस में चले गए, लेकिन भाजपा ने अकाली दल का साथ नहीं छोड़ा। उधर,
अकाली दल ने भाजपा की इच्छा के मुताबिक विधानसभा की चार सीटों की अदला-बदली
से भी इनकार कर दिया। भाजपा को समझौते के तहत अकाली दल ने पहले की तरह
केवल 23 सीटें दीं। भाजपा नेताओं को शायद यह डर रहा होगा कि अकाली दल से
अलग होने पर विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन खराब रह सकता है।
हालांकि, समझौते के बावजूद अकाली-भाजपा गठबंधन 18 सीटें जीत कर सत्ता से
बाहर हो गया।
बादल की इस भावुक अपील को भी लोगों ने अनसुना कर दिया
कि अगर अकाली दल सत्ता में आया तो उनकी उम्र और दस साल बढ़ जाएगी। भले ही
अकाली-भाजपा गठबंधन के सत्ता में आने पर सुखबीर बादल मुख्यमंत्री बना दिए
जाते, लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान वे यही कहते रहे कि मुख्यमंत्री बड़े
बादल ही बनेंगे। अकाली-भाजपा गठबंधन के सत्ता से बाहर होने पर सुखबीर
पार्टी के अध्यक्ष होने के साथ ही विधायक दल के नेता भी बन गए हैं। बड़े
बादल की जगह सुखबीर का विधायक दल का नेता चुना जाना साबित करता है कि
भविष्य में अकाली दल उनके दिशा-निर्देशों पर ही चलेगा।
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