अभिषेक मिश्रा,लखनऊ। राजधानी के बाल महिला अस्पतालों में बेहतर इलाज के लिए नेशनल हेल्थ मिशन की शहरी सामुदायिक स्वास्य केन्द्र अभी तक संचालित नहीं हो पा रहे है। यहां पर अल्ट्रासाउंड व अन्य जांच की सुविधाओं को पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल के तहत संचालित करने का प्रस्ताव है। स्वास्य विभाग ने शासन को प्रस्ताव भेज कर अमली जामा बनाने का अनुरोध भी कर लिया है। [ अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
राजधानी के विभिन्न क्षेत्रों में आठ बाल महिला अस्पताल संचालित है। इनमें शहरी सामुदायिक स्वास्य केन्द्र में तब्दील करने की योजना बनायी गयी है। इसको अमली जामा पहनाने के लिए डाक्टरों की तैनाती व अन्य चिकित्सा सुविधाएं बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड संचालन के लिए रेडियोलॉजिस्ट, फिजिशियन के पद लगातार विज्ञापन देने के बाद भी रिक्त जा रहे है। एनेस्थीसिया के डाक्टर तो कुछ अस्पतालों में सर्जरी करने के लिए तैनात है। रेडियोलॉजिस्ट न होने से अस्पतालों में महिला मरीजों का वर्तमान में अल्ट्रासाउंड नहीं हो रहा है। मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
इसके अलावा सभी जगह पैथालॉजी में आटोएनालाइजर से ब्लड की बायोकेमिस्ट्री जांच नहीं हो पा रही है। इन सब दिक्कतों का निदान करने के लिए एक बार फिर स्वास्य विभाग ने सुविधाओं को दुरस्त करने की तैयारी कर ली है। इसके तहत पीपीपी मॉडल पर सभी जांच कराने की तैयारी चल रही है। पीपीपी मॉडल में मरीज से जांच शुल्क बहुत कम ही लिया जाएगा। जैसे अल्ट्रासाउंड की जांच अगर 500 रुपये में होती है तो अस्पताल में कराने पर 250 रुपये ही लिये जाने का प्रस्ताव है। ऐसे में जहां पर रेडियोलॉजिस्ट नही है, वहां पर अल्ट्रासाउंड की जांच नियमित तौर पर हो सकेगी। इसके अलावा पैथालॉजी में भी लैब टेक्नीशियनों की कमी को देखते हुए ही पीपीपी मॉडल के आधार पर जांच शुल्क लिया जाने की प्रस्ताव है।
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