नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी नवीनतम किताब कोअलिशन इयर्स 1996-2012 में लिखा है कि उन्हें दो बार प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने की उम्मीद थी। पहले 2004 में जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सत्ता में आया और दूसरी दफा 2012 राष्ट्रपति चुनाव से पहले। कांग्रेस के दिग्गज नेता मुखर्जी ने यह भी कहा कि जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह को अपनी पसंद बताया तब वह वास्तव में सिंह के अधीन एक कैबिनेट मंत्री के रूप में सरकार में शामिल होने के लिए अनिच्छुक थे क्योंकि इंदिरा गांधी के समय में मुखर्जी वित्त मंत्री थे और उस समय सिंह उनके जूनियर थे। लेकिन, उन्होंने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया कि मनमोहन सिंह एक आकस्मिक प्रधानमंत्री (एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर) थे। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
मुखर्जी ने कहा, एक मजबूत राष्ट्रवादी, साहसी और दृढ़ विश्वास वाले व्यक्ति, मनमोहन सिंह निश्चित रूप से एक आकस्मिक प्रधानमंत्री नहीं थे। मुझे विश्वास है कि भविष्य मनमोहन सिंह को एक अलग प्रकाश में देखेगा, जैसे (पूर्व प्रधानमंत्री) पी. वी. (नरसिंह राव) का आज के समय में मूल्यांकन किया जाता है। मुखर्जी ने लिखा कि जब सोनिया गांधी ने 18 मई 2004 को संप्रग नेताओं द्वारा रखे गए उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया तो पार्टी और मीडिया में उनकी (सोनिया की) पसंद को लेकर अटकलें तेज हो गई थीं। मुखर्जी ने लिखा है, कांग्रेस पार्टी में उस वक्त आम सहमति थी कि होने वाले प्रधानमंत्री को राजनीतिक नेता होने के साथ साथ पार्टी के मामलों और प्रशासन का अनुभव हो..तो इस लिहाज से सोनिया गांधी के मना करने के बाद मेरे प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद जताई जा रही थी।
उन्होंने कहा, यह संभावना शायद इन तथ्यों के अधार पर जताई जा रही थी क्योंकि मेरे पास सरकार में काम करने का व्यापक अनुभव था जबकि सिंह के पास एक सुधारवादी वित्त मंत्री के रूप में पांच साल के अलावा सिविल सर्वेट का व्यापक अनुभव था। आखिरकार, सोनिया गांधी ने अपनी पसंद मनमोहन सिंह का नाम आगे कर दिया और उन्हें मानना पड़ा। मुखर्जी ने कहा, कुछ मीडिया विश्लेषकों ने खबर दी थी कि मैं सरकार में शामिल नहीं होने जा रहा हूं क्योंकि मैं मनमोहन सिंह के अंतर्गत काम नहीं करना चाहता, जो कि मेरे जूनियर थे जब मैं वित्त मंत्री था। जबकि, बात यह थी कि मैं सरकार में शामिल होने के लिए अनिच्छुक था और मैंने सोनिया गांधी को इस बारे में बताया था।
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