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हिंदू हृदय सम्राट मोदी : हिंदुत्व के नए अवतार के साथ उठान पर PM का विकास मॉडल

Hindu Hriday Samrat Modi : PM Modis populist development model working well in conjunction with Hindutva - India News in Hindi

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री का लोकलुभावन विकास मॉडल, हिंदुत्व के नए अवतार के साथ लगातार उठान पर है और लगता है कि देश के राजनीतिक पटल पर इसकी धमक बढ़ती जा रही है। समाजवादी पार्टी (सपा) और ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के लिए मुस्लिम वोट बैंक अहम है और वे इससे अपना रिश्ता तोड़ने को तैयार नहीं है। कांग्रेस के रणनीतिकार इस निष्कर्ष पर आ चुके हैं कि हिंदू वोट प्रधानमंत्री मोदी के पीछे लामबंद हो रहा है।

हमने ऐसा पहली बार मई 2014 के चुनाव में देखा और उसके बाद फिर असम में, तीन बार उत्तर प्रदेश में और हाल ही में बंगाल का उदाहरण सामने है। बंगाल का किला टूट चुका है। बंगाल में इससे पहले कभी 'जय श्री राम' का नारा नहीं गूंजा था और न ही वहां कभी गौ पूजा हुई थी। राम नवमी के अवसर पर तलवार नहीं भांजी गई थी, क्योंकि यह बंगाल का प्रमुख त्योहार नहीं है।

लेकिन बंगाली उप-राष्ट्रवाद का कार्ड खेलकर ममता भाजपा के उग्र राष्ट्रवाद की जाल में फंस गईं। जबकि 'जय श्रीराम' का टकराव 'जय बांग्ला' और 'जय काली' के साथ और गौ पूजा का दुर्गा पूजा के साथ हुआ।

अमित शाह के राजनीतिक प्रबंधन की विद्या प्रचलित हो गई है। 2014 में 18 फीसदी वोट हासिल करने वाली पार्टी विधानसभा चुनाव में महज 10 फीसदी तक सिमट जाने बाद वापस करीब 40 फीसदी पर पहुंच गई, जिसका श्रेय अमित शाह की रणनीति को जाता है।

मई 2014 में चुनाव परिणाम इस बात का सूचक था कि मोदी और उनकी भाजपा के नए अवतार ने वोटों का एक विशाल हिंदू गठबंधन खड़ा किया है। यह बिल्कुल नया मॉडल था, जोकि अतीत में सोशल इंजीनियरिंग के सभी प्रयासों के बावजूद जाति और धर्म की गलत रेखाओं को तोड़कर खड़ा हुआ था।

आपको यह विश्वास करना होगा, क्योंकि जब भाजपा को उत्तर प्रदेश में 80 सीटों में से 71 और अपना दल को दो सीटों पर जीत मिलती है तो सभी मॉड्यूल्स और मॉडल गंगा में बह जाते हैं।

मतलब हिंदू वोटों का मोदी के पीछे लामबंद होना, जो हुआ। जाति और समुदाय आधारित मॉडलों को तोड़कर 18-22 साल की उम्र वर्ग के पहली बार के मतदाताओं ने मोदी के पक्ष में मतदान किया, जिसके चलते 2014 में इनका 47 फीसदी मतदान हुआ। निस्संदेह, मोदी के विकास के नारे ने विशाल जनसमूह को आकर्षित किया, क्योंकि केंद्र की संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार के प्रति लोगों में गुस्सा था।

हिंदू में मेरे एक आलेख में बताया गया कि पहली बात यह कि भाजपा को अन्य पिछड़ा वर्ग के निचले स्तर का (कुर्मी समुदाय का आधे से अधिक और अत्यंत पिछड़ा वर्ग ने भाजपा को वोट किया) समर्थन मिला, दूसरी बात यह कि पार्टी को दलित वोटों, मुख्य रूप से गैर-जाटवों का काफी अनुपात में समर्थन मिला।

तीसरी बात यह कि पार्टी के पक्ष में ऊंची जाति में अभूतपूर्व स्तर का ध्रुवीकरण हुआ। 90 के दशक से उत्तर प्रदेश में भाजपा के दो मुख्य समर्थक वर्ग थे -ऊंची जातियां और निम्न ओबीसी।

मोदी ने अपने चुनाव अभियान के दौरान अपने भाषणों में बार-बार पिछड़ी जाति के अपने ताल्लुकात का जिक्र किया। लगता है कि भाजपा को ओबीसी मतदाताओं में अपने वोटों की हिस्सेदारी बढ़ाने में मदद मिली।

एम्हर्स्ट स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स के दीपांकर बसु और कार्तिक मिश्रा ने अपने शोध पत्र 'आम चुनाव 2014 में भाजपा को जनांकिक लाभ : अनुभूतिमूलक विश्लेषण' में युवा मतदाताओं की प्रवृत्ति की पुष्टि की है, जिसका जिक्र मैंने इससे पहले किया है।

आंकड़ों के गहन विश्लेषण में उन्होंने पाया कि 2014 के आम चुनाव में 2.31 करोड़ मतदाता ऐसे थे, जो पहली बार मतदाता बने थे और इन्होंने भारी तादाद में मतदान करके चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाई।

एक रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा को पहली बार मतदाता बने युवाओं का 39 फीसदी वोट मिला, जबकि कांग्रेस को इनका सिर्फ 19 फीसदी वोट मिला।

चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 81.45 करोड़ मतदाताओं में से 2.31 करोड़ मतदाताओं की उम्र 18-19 साल थी, जोकि कुल मतदाताओं का 2.7 फीसदी था।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से भाजपा को 71 सीटें मिलीं, जहां 18-19 वर्ष की उम्र वर्ग के 38.1 लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।

वहीं, पश्चिम बंगाल में पार्टी को आंशिक बढ़त मिली। वहां ऐसे मतदाताओं की आबादी 20.8 लाख थी। इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में 1.3 फीसदी युवा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया, जहां प्रदेश की सभी चार सीटों पर भाजपा ने अपनी जीत का परचम लहराया।

देश की राजधानी दिल्ली में युवा मतदाताओं की भागीदारी 2.7 फीसदी रही। उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में पहली बार मतदाता बने 81,760 युवाओं ने मतदान किया, जबकि मतदान करने वाले ऐसे युवाओं की तादाद पश्चिमी दिल्ली में 55,620, उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 54,889 और पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में 46,574 रही।

भाजपा को दिल्ली की सातों सीटों पर जीत मिली। इस प्रकार चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित कराने में युवा मतदाताओं के योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुएट्स के विश्लेषण से जाहिर होता है कि भाजपा की जीत (2009 और 2014 के बीच) और पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं के बीच गहरा सहसंबंध है।

इस प्रकार, जिन प्रदेशों में ऐसे युवा मतदाताओं का अनुपात ज्यादा है, वहां 2009 और 2014 के बीच भाजपा के मतों की साझेदारी में इजाफा हुआ है।

संप्रग सरकार की महत्वाकांक्षी कल्याणकारी योजना मनरेगा में खर्च में वृद्धि की रफ्तार 2009 के बाद मंद पड़ गई। वर्ष 2009-10 में कुल खर्च 37,905.23 करोड़ रुपये था, जबकि 2013-14 में यह खर्च 38,537.60 करोड़ रुपये था। इस प्रकार चार साल में महंगाई जब दोहरे अंक में बढ़ गई थी, तब मनरेगा में मौद्रिक खर्च की वृद्धि की रफ्तार महज दो फीसदी थी।

बताया जाता है कि भाजपा की अभूतपूर्व जीत में यह एक अहम कारक था, जिससे पहली बार वोट करने वाले मतदाताओं में उसकी पकड़ बढ़ी।

भाजपा ने दक्षिण भारत में तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी अपनी पैठ बनाई, जहां न सिर्फ इसका वोट 2.3 फीसदी से बढ़कर 5.5 फीसदी हो गया, बल्कि एक सीट पर जीत भी हासिल हुई।

असम में भाजपा को 2009 में 16.21 फीसदी वोट मिला था, जो 2014 में बढ़कर 36.9 फीसदी हो गया। हालांकि वोटों की हिस्सेदारी बढ़ने से जरूरी नहीं है कि सीटों की संख्या भी बढ़े, लेकिन असम में भाजपा को 2009 में जहां चार सीटें मिली थीं, वहां पार्टी ने 2014 में सात सीटों पर अपना परचम लहराया।

बिहार में भाजपा को 2009 में 13.93 फीसदी वोट मिले थे, जो 2014 में बढ़कर 29.4 फीसदी हो गया और सीटों की संख्या भी 12 से बढ़कर 22 हो गई। वाम दलों का गढ़ पश्चिम बंगाल में भाजपा को 2009 में 6.14 फीसदी वोट मिले थे, जो 2014 में बढ़कर 16.8 फीसदी हो गया। यही नहीं, केरल में भी भाजपा को 10.3 फीसदी वोट मिला, हालांकि पार्टी किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई।

(आईएएनएस)

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