अंबाला। कहते हैं जिद और जुनून के आगे कुछ भी असंभव नहीं है, और यह खूबी में आप में है, तो सफलता निश्चित रूप से आपके कदम चूमेगी। कुछ ऐसा ही जज्बा भारत केसरी दंगल-2017 में देखने को मिला, जब लंगोट बेचकर गुजारा करने वाले सूरज काकरान की बेटी दिव्या ने बड़े-बड़े सूरमा महिला पहलवानों को रिंग में धूल चटा भारत केसरी का खिताब अपने नाम कर लिया। दिव्या को इस जीत पर 10 लाख रुपए मिलेंगे।
एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में दिव्या ने उसनेे वार हीरोज मेमोरियल स्टेडियम में हुए दंगल में 69+ वेट केटेगरी में नामी महिला पहलवान पिंकी को चित्त कर यह फाइट अपने नाम की। दिव्या ने बताया कि उनके पिता सूरज काकरान अब भी लंगोट बेचते हैं। उनके परिवार के लिए यही एकमात्र आमदनी का जरिया है। यह लंगोट उनकी मां संयोगिता बनाती हैं।
पिता भी बनना चाहते थे पहलवान
जूनियर नेशनल लेवल पर 14 गोल्ड मेडल जीतने वाली दिव्या बताती हैं, मेरे पिता सूरज 1990 के दौरान कुश्ती में करियर बनाने के लिए दिल्ली आए थे, लेकिन सफलता नहीं मिली। असफल होने के बाद वह गांव सरधना लौट आए। शादी की और दूध बेचने लगे, लेकिन यहां भी फेल हो गए। इसके बाद पापा जीविका चलाने के लिए दिल्ली चले आए। इस दौरान मेरा जन्म हो चुका था और मैं बड़ी हो रही थी। भारत की अगली साक्षी कही जाने वाली दिव्या कहती हैं- दिल्ली आने के बाद पापा ने मां के हाथ का बनाया हुआ लंगोट बेचना शुरू किया। जहां भी दंगल होता वे लंगोट का ग_र लेकर वहां पहुंच जाते। एक बार उन्होंने गीता फोगाट के बारे में अखबार में पढ़ा तो उन्हें लगा मेरी बेटी क्यों नहीं दंगल कर सकती? बस, यहीं से मेरे रेसलिंग करियर की शुरुआत हो गई। दिव्या फिलहाल, पिता सूरज के साथ ईस्ट दिल्ली के गोकुलपुर में किराए के एक रूम में रहती है।
गीता से भी ज्यादा संघर्ष
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