करौली (अवनीश पाराशर)। कैलादेवी से 2 किमी दूर घने जंगल में जब दानव यहां के लोगों को काल का ग्रास बनाते थे, तब जंगल में रह रहे बाबा केदारगिरी ने घोर तपस्या कर कैलामाता से इस वन में आकर दानवों का विनाश करने की प्रार्थना की। मां खुश हुई और कन्या के रूप में बाबा के पास रही। दिन में मां बाबा के साथ चौपड़ खेलती और रात में निर्जन वन में दानवों का नाश करती। एक बार कन्या के केश से पानी टपकता देखकर बाबा को अचरज हुआ और पूछ लिया कि कन्या आपके केश से पानी कैसे आ रहा है, तब कन्या रूपी मां कैलादेवी ने कहा कि एक भक्त की नाव डूब रही थी, उसे बचाने में केश गीले हो गए। ऐसा कहकर कन्या अंतध्र्यान हो गई और फिर कभी बाबा के पास नहीं आई, क्योंकि मां कैलादेवी पहले ही बाबा से वचनबद्ध हो गई थी कि मैं इस इलाके में ही रहकर दानवों का विनाश करूंगी, पर किसी को प्रत्यक्ष रूप से नहीं दिखूंगी। यह है मां कैला की महिमा। बाबा केदारगिरी का स्थान कैलादेवी से 2 किमी दूर जंगल में आज भी स्थित है। वहां भी श्रद्धालु मन्नतें मांगने जाते हैं। इसके अलावा वहां हमेशा बहने वाला पानी का झरना लोगों को आकर्षित करता है।
दानवों का नाश करने और मानवों का उद्धार करने वाली मां उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त कैलादेवी मंदिर देवी में विराजमान हैं। यहां आने वालों को माता के दर्शन और चरण वंदन के बाद अनोखा सुकून मिलता है। यही कारण है कि साल दर साल कैला मां के दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। राजस्थान के करौली जिला से लगभग 25 किमी दूर कैला गांव में पहाडिय़ों की तलहटी में स्थित कैलादेवी मंदिर पर मेले के समय करीब 60 लाख श्रद्धालु आते हैं। इस बार 25 मार्च से 8 अप्रैल तक मेला भरेगा।
यहां प्रति वर्ष चैत्र माह के नवरात्र में 15 दिन व शारदीय नवरात्र में 9 दिन का लक्खी मेला भरता है। चैत्र माह के नवरात्र में लगभग 50 से 60 लाख श्रद्धालु कैला माता के दरबार में आकर मन्नतें मांगते हैं। वही शारदीय नवरात्र में भी लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं की कोई मन्नत पूरी होने पर माता की भेंट और चढ़ावा चढ़ाकर कन्या लांगुरिया को हलवा और पूड़ी का भोजन कराया जाता है। मेले के दौरान आस्था और भक्ति का ऐसा सैलाब उमड़ता है जो देखते ही बनता है।
करौली जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर अरावली पर्वत माला पर सफेद संगमरमर से निर्मित मां कैलादेवी का भव्य मंदिर है। मंदिर के बाहर विशाल प्रांगण में लोहे की रैलिंगों के बीच से श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करते हैं। मंदिर में कैलादेवी और चामुंडा माता की आदमकद प्रतिमा के दर्शन कर श्रद्धालु दूसरे निकासी द्वार से बाहर निकलते हैं। वहां सीढ़ी की एक-एक बुर्ज पर श्रद्धालुओं को कैलामाता की भभूती बांटी जाती हैं। कैलामाता के मंदिर के ठीक सामने मां के प्रिय बोहरा भगत लांगुरिया भैरवनाथ गणेशजी और शंकर भगवान के मंदिर हैं। कैला माता के दर्शन कर श्रद्धालु इन मंदिरों में भी दर्शन कर भेंट पूजा कर चढ़ावा चढ़ाते हैं।
श्रद्धालु करते हैं कन्या पूजन
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