दिल्ली की एक गैर सरकारी संस्था वी द सिटिजंस ने सुप्रीम कोर्ट में इस
अनुच्छेद को चुनौती दी है और मामले में केंद्र सरकार ने पिछले महीने कहा था
कि इस अनुच्छेद को असंवैधानिक करार देने से पहले इस पर वृहद चर्चा की
जरूरत है। याचिकाकर्ता संगठन का कहना है कि 1954 में राष्ट्रपति ने इस
अनुच्छेद को शामिल करने के लिए संविधान में संशोधन नहीं किया था, बल्कि यह
सिर्फ एक अस्थायी बंदोबस्त था। ये भी पढ़ें - यहां पति के जिंदा रहते महिलाएं हो जाती हैं विधवा
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