कोलकाता। बैंकरों ने शनिवार को कहा कि वे अपने फंसे हुए कर्जों के समाधान के लिए दिवालिया और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) और नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल पर भरोसा कर रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के प्रबंध निदेशक (नेशनल बैंकिंग समूह) रजनीश कुमार ने बताया, ‘‘दिवालियापन और दिवालियापन संहिता, 2016 बहुत उपयोगी है।’’ उन्होंने कहा कि यह तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के समाधान की गति को तेज करेगा। बैंकर ने कहा एनसीएलटी की प्रक्रिया नई है और परिपक्व नहीं है, लेकिन यह तनावग्रस्त परिसंपत्तियों (फंसे हुए कर्जे) के तुरंत समाधान मुहैया कराने की प्रक्रिया है। पहले के मॉडल में फंसे हुए कर्जों के पुर्नगठन की प्रक्रिया (कर्ज में छूट दे देना) थी, लेकिन इस प्रक्रिया से कई समस्याएं हल नहीं हुई थी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
बैंक ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी दीनबंधु मोहापात्रा ने सीआईआई द्वारा यहां आयोजित एक समारोह में कहा, ‘‘पहले के पुनर्गठन मॉडल में फंसे कर्ज को निकालने के लिए ऋणदाता सबसे उसमें कर्जदाता के साथ मिलकर छूट देकर जितना ज्यादा से ज्यादा कर्ज चुकता हो सकता था, उतना निकलवाने की कोशिश करता था। कुछ मामलों में इसका फायदा हुआ, लेकिन भारीभरकम कर्ज के मामले में इससे कोई लाभ नहीं हुआ। अब एनसीएलटी और आईबीसी में सुधार कर नई प्रक्रिया लागू की गई है। अभी तक इस प्रक्रिया का फायदा देखने को मिल रहा है।’’ उनके समकक्ष यूसीओ बैंक के रवि किशन ने भी कहा कि बैंक एनसीएलटी प्रक्रिया को लेकर उत्साहित है।
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