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गाजीपुर में 'केमिस्ट्री' पर क्यों भारी पड़ा 'गणित', यहां जानिए

Reasons for BJP victory in Uttar Pradesh - Varanasi News in Hindi

वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में जीत के बाद अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दौरे के दौरान कहा था कि चुनाव में 'केमिस्ट्री के आगे गणित' फेल हो गया। बात सही भी है, क्योंकि भाजपा ने सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के बावजूद उत्तर प्रदेश में 64 सीटों पर जीत दर्ज की। लेकिन वाराणसी से ही सटे गाजीपुर में यह केमिस्ट्री काम नहीं आई और गणित भारी पड़ गया। भाजपा बड़े अंतर से यह सीट गठबंधन के हाथों हार गई। पिछले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी वाराणसी इसीलिए गए थे, ताकि उत्तर प्रदेश और बिहार में हवा बनाकर अधिक से अधिक सीटें पार्टी की झोली में डाली जा सकें। इस रणनीति में वह सफल भी हुए थे।

इस बार भी वाराणसी सीट से लड़ने का उनका मकसद वही था। सपा-बसपा-रालोद के अपराजेय कहे जाने वाले गठबंधन के बावजूद वह अपने मकसद में कामयाब रहे। उन्हें बोलने का अधिकार भी है। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि गाजीपुर में केमिस्ट्री काम नहीं आई, जो वाराणसी से बिल्कुल सटी हुई सीट है। वाराणसी के चारों ओर लोकसभा की चार सीटें हैं। पूरब में चंदौली, पश्चिम में मछली शहर, दक्षिण में मिर्जापुर और उत्तर में गाजीपुर। इनमें से तीन सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की, लेकिन चौथी सीट गाजीपुर वह गठबंधन के हाथों गंवा बैठी।

भाजपा प्रत्याशी मनोज सिन्हा गठबंधन के बसपा उम्मीदवार अफजाल अंसारी से 119,392 मतों से चुनाव हार गए। आखिर क्यों? इसका सीधा जवाब यह होता है कि इस सीट पर गठबंधन का गणित इतना मजबूत था कि भाजपा की केमिस्ट्री उसे तोड़ नहीं पाई। हालांकि केमिस्ट्री ने अपना काम किया, मगर वह उतनी कारगर नहीं थी कि जीत दिला पाती। दरअसल, गाजीपुर में लगभग चार लाख यादव, इतने ही दलित, डेढ़ लाख मुसलमान, तीन लाख अन्य ओबीसी जातियां, दो लाख क्षत्रिय, 55 हजार भूमिहार और एक लाख बाकी सवर्ण जातियां हैं। अब गणित के हिसाब से मनोज सिन्हा के लिए यह सीट बिल्कुल फिट नहीं बैठती। पिछले 2014 के चुनाव में भी सिन्हा सपा प्रत्याशी शिवकन्या कुशवाहा को महज 32,452 मतों से ही पराजित कर पाए थे।

सिन्हा को कुल 306,929 वोट मिले थे। तब सपा और बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। बसपा उम्मीदवार कैलाश यादव को 2,41,645 मत मिले थे। इस बार सपा-बसपा मिलकर चुनाव लड़ीं और इस गणित के आगे सिन्हा पहले ही चुनाव हार गए थे। सूत्रों के अनुसार, इन्हीं कारणों से भाजपा ने उन्हें इस बार बलिया से लड़ने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन सिन्हा को अपने काम और केमिस्ट्री पर भरोसा था। पांच साल में उन्होंने क्षेत्र में जमकर काम कराया था। चार लेन वाला हाईवे, गंगा नदी पर रेलवे पुल, मेडिकल कॉलेज, स्पोर्ट्स स्टेडियम, आधुनिक रेलवे स्टेशन जैसी कई परियोजनाएं उन्होंने शुरू कराई थी।
इसका असर यह हुआ कि उन्हें इस बार 2014 के मुकाबले 140,031 वोट अधिक मिले। उन्हें कुल 446,960 वोट मिले। यही नहीं उनके वोटों में वृद्धि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी अधिक रही। मोदी को इस बार 2014 के मुकाबले वाराणसी में 93,641 वोट अधिक मिले थे। लेकिन अफजाल अंसारी ने 564,144 वोट हासिल कर लिए, और मनोज सिन्हा चुनाव हार गए। सिन्हा के लिए केमिस्ट्री गाजीपुर में ही फेल नहीं हुई चुनाव बाद पार्टी में भी फेल हो गई। नई सरकार में उन्हें शामिल नहीं किया गया। यानी गणित यहां भी हावी रहा। सच भी है कि केमिस्ट्री कभी-कभी काम करती है, क्योंकि उसके समीकरण अभिक्रिया के आधार पर बनते-बिगड़ते हैं, लेकिन गणित कभी फेल नहीं होता, बशर्ते वह सही और मजबूत हो।

(आईएएनएस)

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Web Title-Reasons for BJP victory in Uttar Pradesh
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