लखनऊ। उत्तर प्रदेश के सांसदों व विधायकों के प्रति
सामान्य शिष्टाचार एवं प्रोटोकॉल संबंधी कुछ खबरें, जो कई समाचार चैनलों पर
दिखाए गए, राज्य सरकार ने उन्हें तथ्यों से परे बताया है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि इस संबंध में कतिपय न्यूज चैनलों द्वारा
तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर ऐसे समाचार प्रसारित किए गए, जिससे ऐसा प्रतीत हुआ
कि नवीन शासनादेश के माध्यम से राज्य सरकार द्वारा वीआईपी संस्कृति को
बढ़ावा दिया जा रहा है।
सरकार के प्रवक्ता ने कहा है कि सांसदों तथा
विधानमंडल के सदस्यों के प्रति सामान्य शिष्टाचार एवं प्रोटोकॉल का समुचित
रूप से पालन सुनिश्चित कराने के संबंध में पूर्व निर्गत शासनादेशों का
संदर्भ देते हुए मुख्य सचिव ने अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए हैं।
प्रवक्ता के अनुसार, मुख्य सचिव द्वारा 14 नवंबर 2007, 6 फरवरी
2008, 30 मई 2008, 21 अक्टूबर 2008, 31 मार्च 2009, 28 मई 2009, 18 जून
2009, 11 मई 2011, 25 मई 2011, 12 अक्टूबर 2012, 10 मई 2013, 25 सितम्बर
2013, 31 दिसम्बर 2013, 25 अगस्त 2014, 15 सितम्बर 2015, 28 अक्टूबर 2016
तथा 19 सितम्बर 2017 को पूर्व निर्गत शासनादेशों की ओर अधिकारियों का ध्यान
आकृष्ट करते हुए यह कहा गया कि प्रश्तगत विषय में निरंतर दिशा-निर्देश
जारी होने के बावजूद शासन के संज्ञान में यह आया है कि इस संसद सदस्यों एवं
राज्य विधानमंडल के सदस्यों के प्रति सामान्य शिष्टाचार/अनुमन्य प्रोटोकॉल
एवं सौजन्य-प्रदर्शन का पालन समुचित रूप से नहीं किया जा रहा है। यथोचित
शिष्टाचार/प्रोटोकॉल का पालन न किए जाने की शिकायतें प्राप्त होती रही हैं।
प्रवक्ता
ने कहा कि सांसद, विधायक, विधान परिषद सदस्य निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं।
वे अपने-अपने क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। लोगों की समस्याओं
एवं जरूरतों के संबंध में इन जनप्रतिनिधियों को अधिकारियों से संपर्क करना
पड़ता है।
उन्होंने कहा कि जनता से जुड़े कार्य सुगमता से संपन्न
हो सकें, इसको देखते हुए मुख्य सचिव द्वारा पहले से जारी शासनादेशों का
हवाला देते हुए अधिकारियों से जनप्रतिनिधियों का सम्मान कर इनकी बातों को
प्राथमिकता पर सुनने की अपेक्षा की गई है।
आईएएनएस
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