लखनऊ। उत्तर प्रदेश में आयुर्वेद चिकित्सकों को अब बिना पंजीकरण के इलाज करना महंगा पड़ेगा। उप्र आयुर्वेदिक तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति बोर्ड ने इस संबन्ध में यूपी मेडिसिन एक्ट के तहत कार्रवाई करने का प्रस्ताव कर दिया है।
क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी डा. शिव शंकर त्रिपाठी ने आईपीएन को बताया कि उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि प्रदेश के समस्त आयुर्वेदिक एवं यूनानी पद्वति के कोई भी निजी चिकित्सा प्रतिष्ठान/चिकित्सक, चिकित्सा कार्य प्रारम्भ करने के पूर्व जनपद के क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी, कार्यालय में अपना पंजीकरण आवश्यक रूप से कराएंगे।
इस संबंध में विभाग द्वारा विगत वर्ष नौ अगस्त को दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशन कराकर यह सूचित किया गया था कि यदि कोई भी आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सक/निजी चिकित्सा प्रतिष्ठान चिकित्सीय कार्य कर रहे हैं अथवा प्रारम्भ करना है तो विज्ञप्ति के प्रकाशन के दो माह के अंदर पंजीकरण करवा लें। लेकिन अभी तक इस कार्यालय को लगभग 80 आवेदन ही प्राप्त हुए हैं, जबकि अकेले लखनऊ मंे चिकित्सकों की संख्या 3500 है।
डा. त्रिपाठी ने बताया कि फर्जी बीएएमएस व बीयूएमएस डिग्री लिखकर चिकित्सा अभ्यास करने वालों के विरूद्ध कार्रवाई करने के लिए रजिस्ट्रार ने 15 नवंबर 2016 को प्रदेश के समस्त जिलाधिकारियों को एवं समस्त क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एव यूनानी अधिकारी को पत्र लिखकर इस मामले पर निर्देश जारी किए थे।
उन्होंने बताया कि तमाम फर्जी लोग अपने नाम के आगे बीएएमएस व बीयूएमएस लिखकर चिकित्सा अभ्यास कर रहे हैं। कुछ चिकित्सकों द्वारा आयुर्वेदिक तथा यूनानी डिग्री एवं फर्जी रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्रों का भी प्रयोग किया जा रहा है। मामले को गंभीरता से लेते हुए बोर्ड द्वारा ऐसे चिकित्सकों के विरूद्ध यूपी मेडिसिन एक्ट की धारा-33 के के तहत कार्रवाई करने का प्रस्ताव पारित किया गया है।
आईएएनएस
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