गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के पूर्वाचल क्षेत्र में पहली बार 'निषाद समुदाय' के लोग प्रमुख वोट बैंक की भूमिका में नजर आ रहे हैं।
निषादों ने खुद को इस हद तक मजबूत कर लिया है कि कोई भी राजनीतिक दल इस समुदाय की अनदेखी नहीं कर सकता।
समुदाय में मांझी, केवट, बिंद, मल्लाह जैसी उपजातियां शामिल हैं, जो मछुआरों व नाविक समुदाय को संदर्भित करती हैं। ये नदियों के किनारे रहते हैं और जल संसाधनों पर पनपते हैं।
ये उन 17 ओबीसी समुदायों में शामिल हैं, जिन्हें 2004 और उसके बाद 2016 में समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार द्वारा अनुसूचित जाति का दर्जा देने का प्रस्ताव दिया गया था। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
राज्य सरकार ने इन जाति समूहों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने के लिए एक सरकारी आदेश जारी किया। लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसले पर रोक लगा दी।
यह लोकसभा चुनाव निषाद समुदाय के लिए एक नया मोड़ है, जिसने राजनीतिक सौदेबाजी की शक्ति हासिल कर ली है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस बात को स्वीकार कर लिया है।
2013 में 'राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद' के गठन के बाद से ही निषाद एक राजनीतिक समूह में शामिल होने लगे।
निषादों को एक करने के लिए 'राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद' की जनवरी 2013 में स्थापना की गई। यह संगठन आज भी मौजूद है।
अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज करने के लिए निषाद पार्टी को अगस्त 2016 में पंजीकृत किया गया। पार्टी ने 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 62 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। हालांकि इस पार्टी को केवल भदोही में जीत हासिल हुई।
निषाद (निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल) अब एक राजनीतिक शक्ति है, जिसका नारा है, 'जिसका दल उसका बल, उसकी समस्याओं का हल।'
निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद ने अपने समुदाय के महत्व को रेखांकित किया, जब उन्होंने पिछले साल समाजवादी पार्टी के टिकट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गढ़ गोरखपुर में उपचुनाव में जीत हासिल की थी।
वह अब भाजपा के टिकट पर संत कबीर नगर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
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