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स्मृति शेष : हिन्दी के वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण ने खड़ा किया अलग रचना संसार

फैजाबाद /नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में 1927 ई. में जन्मे ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण का 90 वर्ष की उम्र में बुधवार सुबह निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि चार जुलाई को मस्तिष्काघात के बाद वह कोमा में चले गए थे। उसके कारण इस बीच उन्हें लगातार अस्पताल में भी भर्ती रखा गया था। उनका निधन उनके चितरंजन पार्क स्थित घर पर हुआ। उनका अंतिम संस्कार दिल्ली के लोधी शव दाहगृह में किया गया।

मूलत: विज्ञान विषय के छात्र रहे कुंवर नारायण का बाद में साहित्य की तरफ रुझान बढ़ा। अंग्रेजी साहित्य से एम. ए. करने के बाद अंग्रेजी में कविता लेखन की शुरुआत की लेकिन बहुत जल्द हिन्दी कविता की तरफ आकर्षित हो गए। कविता के अलावा वे अपनी कहानियों और आलोचनात्मक लेखन के लिए भी जाने जाते हैं। उनके काव्य- संग्रहों में चक्रव्यूह, परिवेश : हम तुम, आत्मजयी, अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, इन दिनों, वाजश्रवा के बहाने, हाशिये का गवाह अदि प्रमुख हैं। अ™ोय द्वारा 1959 में संपादित तीसरा सप्तक के कवियों में शामिल कुंवर नारायण बहुत जल्द नयी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर बन गए।

'आकारों के आसपास' नाम से उनका एक कहानी संग्रह आया। 'आज और आज से पहले' नाम से उनका एक गंभीर आलोचना ग्रन्थ भी है। उनकी रचनाएं इतालवी, फ्रेंच, पोलिश सहित विभिन्न विदेशी भाषाओं में अनूदित हुईं। कुंवर नारायण अब तक कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजे जा चुके थे जिनमें हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार, केरल का कुमारन अशान पुरस्कार, व्यास सम्मान, श्लाका सम्मान हिंदी अकादमी दिल्ली, उ.प्र. हिंदी संस्थान पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, कबीर सम्मान प्रमुख हैं। साहित्य अकादमी ने उन्हें अपना वृहत्तर सदस्य बनाकर सम्मानित किया था। साहित्य सेवा के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका था।

मिथक और समकालीनता को एक सिक्के के दो पहलू मानते हुए उन्होंने साहित्य का एक अलग रचना संसार खड़ा किया जिसमें परंपरा से रचनात्मक संवाद करते हुए समकालीन जीवन की समस्याओं के प्रति उन्होंने पाठक समाज को एक नई दृष्टि दी। वे इष्र्या द्वेष के बदरंग हादसों से मुक्त एक ऐसे जीवन की कल्पना करते थे जिसमें विनम्र अभिलाषाएं हों बर्बर महत्वाकांक्षाएं नहीं, कर्कश तर्क-वितर्क के घमासान की जगह लोगों की भाषा कवित्व से भरी हुई हो, विवेक के सूत्र में बंधा आत्मीय संबंधों से जुड़ा बोलता आस-पड़ोस हो जीवन और मानवीय संबंधों के इस गहरे और व्यापक अनुभव के कारण ही वे अपनी कविता और अन्य रचनाओं में वेदों, पुराणों व अन्य धर्मग्रंथों से उद्धरण देते हैं तो समकालीन पाश्चात्य चिंतन, लेखन परंपराओं, इतिहास, सिनेमा, रंगमंच, विमर्शो, विविध रुचियों एवं विषद अध्ययन को लेकर अंतत: उनका लेखन संवेदनशील लेखन में बदल जाता है।

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