अमेठी। मुसलमानों का पवित्र महीने रमज़ान का आगाज हो गया है,इस
महीने में अल्लाह अपने बन्दों से सुबह सादिक से सूरज गुरूब होने तक एक
निश्चित समय के लिए शारीरिक जरूरतों के लिए जायज चीजो को इस्तेमाल करने पर
रोक लगा देता है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
रोज़ा अरबी के शौम शब्द से बना है जिसका मतलब रुक जाना होता है रोज़ेदार
अपने सभी शारीरिक आवश्यकताओ की पूर्ति से एक निश्चित समय के लिये रुक जाना
है और यह अमल मुस्लमान रमजान के महीने में करता है।रमजान वह महीना है जिसमे
कुरआन उतारा गया जो इंसानों के लिये सर्वथा मार्ग दर्शन है और स्पष्ट
शिक्षाओं पर आधारित है जो सीधा मार्ग दिखाने वाली और सत्य एवं असत्य का
अंतर खोल कर रख देने वाली है इसलिये अब जो इस महीने को पाएं उस पर अनिवार्य
है कि पूरे महीने रोज़े रखें
रमजान का पूरा महीना पुरे वातावरण को पुण्य(नेकी)और ईश
परायणता(परहेज़गारी)से आत्मा को सराबोर कर देती हैं पूरी कौम में ईश भय की
खेती हरी-भरी हो जाती है हर इंसान (औरत व् मर्द)स्वयं पाप (गुनाह)से बचने
की कोशिश करता है।हर व्यक्ति को रोज़ा रखकर गुनाह करते हुए शर्म आती है और
हर एक के हृदय में स्वयं में इच्छा बलवती होती है कि कुछ नेकी व भलाई का
कार्य करें ,किसी भूखे को खाना खिलाएं ,किसी नंगे को कपड़ा पहनायें ,किसी
मुसीबत के मारे की मदद करें यह बाते वर्ष की ग्यारह महीनों की अपेक्षा
अल्लाह के दिए हुए इस रहमत व् बरकतो वाला माह-ए-रमज़ान के महीने में कई गुना
बढ़ जाती हैं इस महीने में भलाईया आम हो जाती हैं और बुराईयों से लोग बचते
भी हैं और दुसरो को नसीहत कर बुराईयों से रोकते हैं एक तरह से ईश भय का
माहौल तैयार हो जाता है।
रोज़ा का असल मकसद है झूठ से बचना "अंतिम ईशदूत (आखिरी पैगम्बर)हजरत मुहम्मद सल्ल0 अलैहि वसल्लम "का कथन है।`
जिस किसी ने झूठ बोलना और झूठ पर अमल करना ही नही छोड़ा तो उसका खाना और
पीना छुड़ा देने की अल्लाह तबारक तआला को कोई आवश्यकता नही"" बहुत से
रोजेदार ऐसे है कि रोज़े से भूख -प्यास के सिवा उनके पल्ले कुछ नही पड़ता और
बहुत से रातों को ख़ड़े रहने वाले (रातभर जागकर अल्लाह की इबादत करने वाले
)ऐसे है कि रतजगे के आलावा उनके पल्ले कुछ नही पड़ता।।
हज़रत मुहम्मद सल्ल0 के कथनो का मतलब साफ है कि खाली भूख और प्यासा रहना इबादत नही बल्कि इबादत का आधार है,असल इबादत है
अल्लाह (ईश्वर)के खौफ के कारण से अल्लाह के बनाएं हुए नियमो को तोड़ना और
ईशप्रेम के लिये हर उस कार्य की तरफ शौक़ से बढ़ना जिसमें अल्लाह जी भलाई
शामिल हो और अपने नफ़्स (इंद्रियों)पर नियंत्रण करना जहाँ तक सम्भव हो
दूसरों की मदद करना ,किसी के साथ अन्याय व् अत्याचार न करना,किसी के दिल को
न दुखाना अपने पड़ोसियों का ख्याल रखना ,किसी का हक ना मारना,किसी परायी
स्त्री के बारे में गलत नजरो से ना देखना व् सोचना आदि ये सब इबादत हैं,इस
इबादत से जो व्यक्ति ग़ाफ़िल (बेपरवाह)रहा उसने बिना मतलब अपने पेट को भूख
-प्यास की तकलीफ दी,अपनी इन्द्रियों को दुःख पहुँचाया अपने आपको उसने यातना
दी ,अल्लाह (ईश्वर)की उसकी चाहत कब थी कि बारह से पंद्रह घण्टे के लिये
उसका खाना पीना छुड़ाता।
रोजा गुनाहों से बचने की ढाल हैं
रोज़ा ढाल की तरह है जिस तरह ढाल दुश्मन के वार से बचने के लिये है उसी तरह
रोज़ा भी शैतान के वार से बचने के लिये है।जब भी कोई व्यक्ति रोज़ा से हों तो
उसे चाहिये कि उस ढाल का प्रयोग करें और उससे कोई लड़े तो उससे कह देना
चाहिये भाई मैं रोजे से हूँ मेरे बारे में ये मत समझना की मैं तुम्हारे इस
लड़ाई के काम में हिस्सा लूँगा।यही सब बाते अगर इंसान के अंदर नही उतरती है
तो उसके रोजा रखने से कोई फायदा नहीँ है।
आदमी जितनी अधिक नेक नीयती के साथ इस महीने में अमल करेगा उसी तरह बरकतों
का अधिक से अधिक फायदा उठाएगा और अपने दुसरे भाईयो को फायदा पहुचायेगा और
जिस तरह इस महीने के लक्षणों (इबादतों-)या नेक कार्यो को बाकी के ग्यारह
महीनो में बाकी रखेगा उतना ही फ़ूले,फलेगे और अगर व्यक्ति खुद को अपने अमलों
से उसको सीमित करले तो ये उस व्यक्ति की गलती है।"अल्लाह `"के के बरकतों
और नेयमतो से महरूम(वंचित) रह जायेगा।
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