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कैग रिपोर्ट : यूपी की सुरक्षा कबाड़ असलहों के भरोसे, आधी UP पुलिस के पास अप्रचलित राइफल

अमरीष मनीष शुक्ला, इलाहाबाद। कैग रिपोर्ट से युद्ध के दौरान 10 दिन के ही मौजूद गोला बारूद की खबर के बीच एक और बड़ा खुलासा हुआ है। कैग रिपोर्ट के अनुसार यूपी की सुरक्षा कबाड़ असलहों के सहारे है। यूपी के आधे वर्दीधारी अप्रचलित राइफल से कानून व्यवस्था सम्भाले हुए है। यानी प्रदेश की सुरक्षा सच में राम भरोसे हैं।

प्रधान महालेखाकार पीके कटारिया ने इलाहाबाद में मीडिया के सामने रिपोर्ट की डिटेल बताते हुये कहा कि यूपी में लगभग 48 प्रतिशत पुलिस बल अब भी प्वाइंट 303 बोर राइफल का उपयोग कर रहा है। सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इस राइफल को 20 साल पहले ही गृह मंत्रालय ने अप्रचलित घोषित कर दिया है। यानी यह राइफल कबाड़ की श्रेणी में है। लेकिन पुलिस को तो इन्ही राइफल से आतंकियों - नक्सलियों से लेकर गैंगस्टर और चोर- लुटेरों तक से लड़ना है। पीके कटारिया ने आगे बताया कि आधुनिकीकरण एवं सुदृढ़ीकरण पर यह 2011-12 से 2015-16 वित्तीय वर्ष के दौरान की रिपोर्ट विधानसभा में पेश हुई है।

प्रधान महालेखाकार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार सूबे में शस्त्र नीति में संशोधन के लिये 17 साल पहले कार्रवाई शुरू हुई। गृह मंत्रालय ने 1995 में प्रस्ताव दिया था। खैर 17 साल बाद पुलिस महानिदेशक ने अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को दी। लेकिन राज्य सरकार द्वारा इसका जवाब देना हुआ तो राज्य सरकार ने भी इसे आगे बढाने में चार साल और लगा दिये। आप जरा खुद ही सोचिये कि आखिर सरकार ऐसा क्यों कर रही है। यह तो उदासीनता की पराकाष्ठा है। अगर कैग रिपोर्ट की पुख्ता बातों को माने तो उत्तर प्रदेश के एकलौते हथियारों व गोला-बारुद के केंद्रीय भंडार सीतापुर में आधुनिकीकरण की कोई भी गतिविधि नहीं हुई।

सीसीटीवी जैसी आधुनिक सुरक्षा प्रणाली पर भी यूपी पूरी तरह से असफल है। यूपी के 15 जिलों की रिपोर्ट के अनुसार निगरानी के लिए लगाए गए 691 क्लोज सर्किट टेलीविजन कैमरा (सीसीटीवी) में 39 प्रतिशत तकनीकी दोषों के कारण या मेंटनेन्स के अभाव में खराब पड़े थे।

यूपी में अगर पुलिस कर्मियों की संख्या पर बात की जाये तो यह कैग रिपोर्ट उसकी भी पोल खोलती है।


यूपी में 1 अप्रैल 2015 तक 3,77,474 स्वीकृत हैं। लेकिन कुल पुलिस कर्मियों की संख्या 1,80,649 है। कैग रिपोर्ट के अनुसार दारोगा के 52 % व कांस्टेबल के 55 प्रतिशत पद रिक्त हैं। जबकि साइबर अपराधों की जांच के लिए सिर्फ लखनऊ और गौतमबुद्धनगर में साइबर अपराध पुलिस स्टेशन है। जबकि यह हर शहर में होने चाहिये। यही कारण हैं कि मुकदमों में आईपीसी में 24 % व सीआरपीसी में 35 % की वृद्धि हुई है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यूपी में पुलिस वालों के रहने के लिये खुला आसमान ही ठिकाना है। कम-से-कम कैग रिपोर्ट तो यही बताती है।

अगर 2015 के आंकड़े देखे तो खाकी को 1,25,998 आवास की आवश्यकता है। लेकिन इस वक्त 59453 के लिये आवास नहीं है । वहीं बैरक की बात करें तो 68874 कर्मियों में से 18259 पुलिस कर्मियों के लिए बैरक नहीं है।





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Web Title-the security of UP with old wepon said CAG report
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