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उदयपुर। उदयपुर शहर विधानसभा सीट से लगातार विधायक चुने गए गुलाबचंद कटारिया असम के राज्यपाल क्या बने कि उदयपुर में सियासी भूचाल आ गया। विधायक बनने का सपना पाले बीस सालों से इंतजार कर रहे भाजपा नेता फिर सियासी जवान हो गए हैं। उधर, कांग्रेस के छुटभैया नेताओं ने भी अब यह मान लिया है कि उनकी बदौलत ही कांग्रेस उदयपुर सीट पर कब्जा कर सकती है, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। यही नहीं मीडिया से जुड़े कुछ पार्टी प्रत्याशी जो खुद को पत्रकार भी मानते हैं…बहुत ही चतुराई से मीडिया ट्रायल करवा रहे हैं। हर गुट के सर्वे फार्म सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं और उनके रिजल्ट भी हाथोंहाथ मिल रहे हैं जिसमें उनको सबसे ज्यादा वोट मिल रहे हैं। कुल मिलाकर उदयपुर में सियासत मजाक बन गई है।
पहले बात भाजपा की करते हैं। कटारिया के मेनस्ट्रीम सियासत से बाहर होने के बाद वही हो रहा है जो आमलोग सोच रहे थे, यानी दावेदारों की कतार हर रोज लंबी होती जा रही है। बहरहाल मुख्य दावेदारों में उपमहापौर पारस सिंघवी जो चौथी बार पार्षद चुने गए हैं वे सबसे बड़े दावेदार के रूप में उभरे हैं। दूसरे नंबर पर भाजपा शहर जिलाध्यक्ष रवींद्र श्रीमाली हैं जो खुद तीन बार पार्षद चुने गए, सभापति रहे और यूआईटी चेयरमैन रहे हैं। इसके अलावा भाजपा के दिग्गज नेता प्रमोद सामर और निगम में निर्माण समिति अध्यक्ष, पूर्व उपप्रमुख और पार्टी के विभिन्न पदों पर ताराचंद जैन का नाम भी शामिल हैं। महिलाओं को मौका मिलता है तो प्रदेश महिला मोर्चा अध्यक्ष अलका मूंदड़ा, महिला समृद्धि बैंक की चौथी बार अध्यक्ष चुनी गईं किरण जैन और पूर्व मेयर रजनी डांगी का नाम भी दावेदारों में शामिल है। वैसे ये सभी नाम मीडिया ट्रायल में सामने आ चुके हैं। खास बात यह है कि ये सभी दावेदार जयपुर में भाजपा प्रदेश मुख्यालय, असम के राजभवन, केंद्रीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दफ्तरों से संपर्क साध रहे हैं। कुछ टेलीफोन के जरिये तो कुछ खुद अपने राजनीतिक गुरुओं से मिलकर दावेदारी पक्की कर रहे हैं।
इन नेताओं के समर्थक भी सियासी बाजार में अपने नेताओं की दावेदारी पक्की करने में लगे हैं और दूसरे दावेदारों के भ्रष्टाचार से लेकर अन्य कमजोरियों की कड़ियां जोड़ने पर लगे हैं ताकि किसी को भी पीछे धकेला जा सके। परंपरा के मुताबिक अभी भाजपा में कई लेटर बम भी आने वाले हैं जिनकी तैयारियां की जा रही है। इनके अलावा कुछ छुटभैया नेता भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।
कांग्रेस में कुछ नेता अपना नाम आगे बढ़ाने में लगे हैं। ऐसा नहीं है कि वे दावेदार नहीं हो सकते हैं, राजनीति में कुछ भी संभव है। लेकिन सच यह है कि पार्टी अपने स्तर पर सर्वे करवा रही है, लेकिन इस वक्त सोशल मीडिया पर अलग अलग पैनल के सर्वे फार्म लोगों को भेजे जा रहे हैं। उनके रिजल्ट के जरिये ही वे लोग खुश हो रहे हैं कि शहर में उनका वर्चस्व सबसे ज्यादा है। कांग्रेस में जिन लोगों के नाम सामने आए हैं…उनमें मौजूदा मनोनीत पार्षद अजय पोरवाल, पंकज शर्मा, दिनेश श्रीमाली, जगदीशराज श्रीमाली, गोपाल शर्मा, सुरेश श्रीमाली, महेंद्र शर्मा, त्रिलोक पूर्बिया, पवन खेड़ा और प्रीति शक्तावत के नाम शामिल हैं।
बाहरी नेता क्यों कर रहे हैं दावेदारी
भाजपा और कांग्रेस में दो बड़े नेताओं के नाम दावेदारी के रूप में सामने आए हैं। इनमें भाजपा से केके गुप्ता हैं जो डूंगरपुर के रहने वाले हैं, वहीं डूंगरपुर जिले से ही कांग्रेस के दिनेश खोडनिया का नाम भी उदयपुर से दावेदारी के रूप में चल रह है। सवाल यह है कि इन दोनों का क्या उदयपुर से दावेदारी करनी चाहिए? उनका उदयपुर के किसी भी इश्यू के लिए क्या योगदान है? ऐसा भी नहीं है कि वे कोई राष्ट्रीय या प्रदेश स्तरीय नेता हो। शहर के लोग इस बात पर विचार कर रहे हैं कि आखिर ये दोनों नेता दावेदारी क्यों कर रहे हैं? हालांकि कुछ अवसरवादी लोग बतौर समाज या राजनीतिक गुरु के रूप में इनका नाम चल रहा हैं।
सच तो यह है-हमें कटारिया और सुखाड़िया जैसा नेता चाहिए
दरअसल उदयपुर शहर विधानसभा क्षेत्र बहुत ही महत्वपूर्ण सीट है। यहां से पूरे मेवाड़ की सियासत निर्धारित होती है। आधुनिक राजस्थान के निर्माता और पूर्व मुख्यमंत्री स्व. मोहनलाल सुखाड़िया इस सीट से चुनकर मुख्यमंत्री बने थे। सांसद चुने गए थे। इसी तरह नेता प्रतिपक्ष और पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया जैसा कद्दावर नेता इस सीट से लगातार विधायक बनता रहा है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो मेवाड़ की सियासत का केंद्र रहा उदयपुर शहर की सियासी इमारत पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगी। भाजपा और कांग्रेस के अलाकमान भी प्रत्याशी तय करते वक्त इस बात का ध्यान रखेंगे।
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