राजसमंद । मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की पहल पर चल रहा
मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान (एमजेएसए) प्रदेश भर में जलीय
आत्मनिर्भरता का पैगाम गूंज रहा है। जल संकट से हमेशा रूबरू होते रहने वाले राजस्थान के लिए यह अभियान राज का वह वरदान सिद्ध हुआ है
जिसे वर्तमान और आने वाली पीढ़ियां सदियों तक याद रखेंगी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
इस
अभियान की बदौलत राजस्थान अब पानी से जुड़ी कई समस्याओं से मुक्ति पा चुका
है और हर तरफ धरा सरस, स्निग्ध और सुकूनदायी हो उठी है। न केवल मानव बल्कि
पशु-पक्षियों और वन्य जीवों तक के लिए पीने के पानी के प्रबन्ध, सिंचाई
सुविधाओं के विस्तार, खेती-बाड़ी की उन्नति बल्कि जलीय पर्यटन और जल से
संबंधित उद्योग-धंधों, हरियाली विस्तार, पर्यावरणीय और परिवेशीय सुकून और
आनंद से जुड़े तमाम आयामों में व्यापक बढ़ोतरी से जनजीवन समृद्ध होने लगा
है।
नैसर्गिक रमणीयता से भरपूर शौर्य-पराक्रम की
ऎतिहासिक वीर गाथाओं को गुंजाने वाली राजसमन्द की धरा पर मुख्यमंत्री जल
स्वावलम्बन अभियान (एमजेएसए) आशातीत रूप से सफलता पाता जा रहा है।
इस
अभियान के प्रति राज्य सरकार एवं स्थानीय प्रशासन से लेकर जन
प्रतिनिधियों, सहयोगियों और आम जन की भागीदारी का ही परिणाम है कि प्रकृति
की मेहर बरसने लगी है और इससे मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान में बनी
विभिन्न आकार-प्रकारों की जल संरचनाओं में खूब पानी भरा।
बड़े
पैमाने पर बरसाती पानी राजसमन्द जिले के भूगर्भ में समाया और इस वजह से
भूगर्भ में जल भण्डार में बढ़ोतरी हुई। इसका असर ये हो रहा है कि कूओं में
जलस्तर बढ़ने लगा है। इन जल संरचनाओं की वजह से ग्रामीण विकास की गतिविधियों
को सम्बल मिला है और ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खेती-बाड़ी से लेकर सभी
प्रकार के कार्यों में एमजेएसए की बदौलत उपलब्ध जलराशि को सहयोगी मानकर
तरक्की की दिशा पाते जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री जल
स्वावलम्बन अभियान ने ग्रामीणों के साथ ही मवेशियों के लिए भी अच्छे दिनों
का अहसास करा दिया है। राजसमन्द जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में पहाड़ियों
के बीच बड़ी संख्या में जल संरचनाओं का निर्माण कम लागत में करवाया गया है।
इनमें बरसाती पानी रुका, भूमि में समाया तथा सतही जल स्रोत भी विकसित हुए
हैं।
श्रीनाथद्वारा के आस-पास पहाड़ी क्षेत्रों
में अवस्थित श्रीनाथजी के बीड़ों (परंपरागत चरागाहों ) में मवेशियों को चरने
और पानी के लिए एमजेएसए में बनी जल संरचनाएं बेहद उपयोगी सिद्ध हो रही
हैं। पहले जहाँ बरसाती पानी बहकर आगे निकल जाता था, इस वजह से घास-चारा और
हरियाली भी कुछ समय बाद नज़र नहीं आती थी वहीं अब पहाड़ों से आने वाला पानी
जगह-जगह रुकने लगा है।
इस वजह से पानी के
साथ-साथ घास-चारा और हरियाली का सुकून दीर्घकाल तक पसरा रहने लगा है और
मवेशियों के लिए यह जीवनदायी सिद्ध हुआ है। नाथद्वारा के समीप डींगेला,
वागोल, ओडन, उथनोल और आस-पास के केलिया कूरी, सरदाणा मगरी आदि पहाड़ी
क्षेत्र में एमजेएसए के अन्तर्गत शताधिक कार्य हुए हैं। इनमें श्रीनाथजी
और गांव वालों के मवेशियों के लिए उपयोगी बने पहाड़ी चारागाहों को देख
क्षेत्रवासी प्रफुल्लित हैं।
ग्रामीणों को कहना
है कि इससे मवेशियों को राहत मिलने के साथ ही गांवों में कूओं का जलस्तर
बढ़ने लगा है और इससे खेती-बाड़ी, सब्जी और फल उत्पादन के साथ ही पेयजल की
दृष्टि से काफी राहत प्राप्त हुई है। पहाड़ों में रहने वाले वन्य जीवों को
भी पीने के पानी की सहूलियत हुई है।
श्रीनाथजी
के बीड़े में कई सालों से काम रहा मोपाकुड़ा का कालू और अस्पताल का कार्मिक
नाथूवास का देवीलाल कहता है कि पहाड़ी क्षेत्रों मेें बरसाती पानी बाँधने के
जो भी प्रयोग हुए हैं उससे गांवों के लोग उत्साहित हैं और इससे भूमिगत जल
स्तर में बढ़ोतरी हुई है तथा सतही जल की उपलब्धता से पशु-पक्षियों और
ग्रामीणों सभी को फायदा हुआ है। श्रीनाथजी बीड़े में देखभाल करने वाले विजय
और लखन भी यही बात दोहराते हुए कहते हैं कि इससे मवेशियों के पोषण और पानी
की कमी दूर हुई है।
राजसमन्द जिले के पहाड़ी
क्षेत्रों में जगह-जगह बरसाती पानी को रोकने के प्रयासों में आशातीत सफलता
मिली है और ग्रामीण एमजेएसए के कामों को उपयोगी बताते हुए इसे हर क्षेत्र
में व्यापकता देने की जिद करने लगे हैं।
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