जोधपुर। एक सवाल जो आपको भी हैरान कर देगा। क्या हमारी बेटियां जलने के लिए पैदा होती है? क्या आज भी बेटियों की सिसकियां किसी को सुनाई नहीं देती? क्या हम सब बिना बेटी के पैदा हुए? किसी के आंगन में बेटी हुई तब आप और हम ये दुनिया देख पाए। सच तो यही है, लेकिन जोधपुर जिले के बिलाड़ा उपखंड के हरियाढाणा में हुआ हादसा एक बेटी को ज़िंदा जला गया और प्रशासन से लेकर सरकार तक सब मौन हैं? आखिर इस मौन व्रत का अर्थ क्या निकाला जाए, क्या बेटी की सिसकियां सरकार को सुनाई नहीं दीं, हां, विपक्ष ने आवाज जरुर उठाई, लेकिन इस गांव में एक बेटी की चिता अब भी चीख-चीख कर कह रही है, क्या मेरे गुनहगारों की सरकार पनाहगार बन रही है? ऐसा नहीं है तो फिर पुलिस और प्रदेश के गृहमंत्री के बयान दोगले क्यों है?
बहन की मौत पर भाई की रिपोर्ट
जिले में बिलाड़ा उपखंड के हरियाढाणा गांव में शनिवार 25 मार्च को ललिता को पेड़ काटने का विरोध करने पर कथित तौर पर पेट्रोल छिड़क कर जलाए जाने के मामले में उसके भाई विद्याधर उर्फ पवन ने दस लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। रिपोर्ट में क्या कहा गया है वो आप खुद जानिये।
"पुलिस में दी गई रिपोर्ट में ललिता के भाई विद्याधर के अनुसार घटना वाले दिन सरपंच रणवीर सिंह और पटवारी ओमप्रकाश घटना स्थल पर भैरूबक्श, बाबू चौकीदार, सुरेश चौकीदार, मदन सिंह व हिम्मत सिंह के साथ आए और जेसीबी से पेड़ उखड़वाने लगे। इस पर विद्याधर के साथ उसके भाई किशन और बहन ललिता व सुमन ने विरोध किया तो वे मारपीट करने लगे। बाबू चौकीदार ने श्रवण सिंह से कहा कि पेट्रोल ला, आज पूरी समस्या ही खत्म कर देंगे। जब वह पेट्रोल लेकर आया तो किशन, ललिता व सुमन बचने के लिए भागने लगे। विद्याधर को सरपंच व पटवारी ने पकड़ लिया। बाबू चौकीदार ने ललिता को पकड़ कर नीचे गिरा दिया। किशन व सुमन उसे बचाने लगे तो हिम्मत सिंह, मदन सिंह व भैरूबक्श ने दोनों को पकड़ लिया। फिर बाबू चौकीदार, श्रवण सिंह व सुरेश ने ललिता पर पेट्रोल छिड़क कर उसे जला दिया और सभी लोग भाग गए।"
चूँकि मामला विधानसभा में गूंजा, लेकिन सरकार के गृहमंत्री का बयान सरकार की मंसा पर आ गया कि आखिर सरकार गंभीर क्यों नहीं है? बात सीधी सी है, कोई लड़की खुद तो कतई नहीं जल सकती और वो भी इतने लोगों के सामने। अगर कोई 50 लोगों के बीच जलने का प्रयास करता है तो उसे जलने नहीं दिया जा सकता। या यूँ कह दें ललिता के जले शरीर के बाद स्पष्ट हो जाता है इतने लोगों के बीच किसी का इतना जलना असंभव होता है और फिर जब सरकार को ऐसा लगता है तो फिर आरोपी भूमिगत क्यों हुए ? ऐसा तो नहीं है कि दबंगई के आगे लोग उनके खिलाफ कुछ भी कहना नहीं चाहते। क्योंकि यहाँ तो समंदर में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं लिया जा सकता वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
लोगों के सवाल, सुलगता विरोध
मृतका ललिता निहायत ही गरीब ब्राह्मण परिवार से थी। गाँव के दबंग जोर जबरदस्ती से ललिता के भाई के खेत से रास्ता निकालना चाहते थे और उस जगह पेड़ थे और पीडिता का विरोध भी यही था, न हक़ की खाने देंगे और न पेड़ काटने देंगे। लेकिन दबंग अपनी पर अड़े थे और जो हुआ सब सामने है। पवन ने जो बताया वो पुलिस की रिपोर्ट में भी है और मीडिया में भी। दबंगों ने विरोध का जवाब ललिता को जलाकर दिया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। ऐसे में सरकार की लीपापोती के बाद पुलिस इस मामले को कितना इमानदारी से जांचेगी इसमे कोई शक ही नहीं है। जाहिर है पर्यावरणप्रेमी, समाज और लोग सरकार के खिलाफ आन्दोलन की राह पर है और हो सकता है लोग सडकों पर भी उतर आये।
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