जयपुर। राज्य सरकार द्वारा प्रख्यापित दण्ड विधियां (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 में ऎसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टोलरेंस की राज्य सरकार की इच्छा शक्ति कमजोर हो रही हो। जीरो टोलरेंस की अपनी नीति पर कायम रहते हुए सरकार ने कहीं भी भ्रष्ट लोकसेवकों को संरक्षण देने की इस अध्यादेश में बात नहीं कही है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने रविवार को मीडिया को बताया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) एवं 190 (1) में इस प्रकार के संशोधन करने वाला राजस्थान पहला राज्य नहीं है, इससे पहले महाराष्ट्र विधानसभा 23 दिसम्बर, 2015 को ऎसे संशोधन पारित कर चुकी है। इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही मंशा है कि धारा 156 (3) का कोई भी व्यक्ति गलत इस्तेमाल कर किसी भी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोकसेवक की छवि खराब न कर सके।
उन्होंने बताया कि धारा 156 (3) में अदालत के माध्यम से पुलिस थानों में अधिकतर छवि खराब करने, नीचा दिखाने और व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण किसी भी प्रतिष्ठित और बड़े से बड़े लोकसेवक के खिलाफ मुकदमे दर्ज करवा दिए जाते हैं और मीडिया में उनके खिलाफ खबरें छप जाती है। इससे लोकसेवक की छवि तो धूमिल हो ही जाती है और उसे मानसिक संताप तथा झूठी बदनामी का सामना भी करना पड़ता है। बाद में ऎसे अधिकतर प्रकरण झूठे पाए जाते हैं और उनमें पुलिस एफआर लगाती है।
कटारिया ने बताया कि यह संशोधन ऎसे झूठे मुकदमों पर अंकुश लगाने के लिए किए गए हैं, ताकि ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोकसेवक अपने कर्तव्यों का निर्वहन बिना किसी मानसिक संताप के कर सकें और उन्हें झूठी बदनामी का शिकार नहीं होना पड़े। उदाहरण के तौर पर 2013 से 2017 के बीच जितने भी मुकदमे 156 (3) में दर्ज हुए उनमें से करीब 73 प्रतिशत मुकदमों में पुलिस ने एफआर लगाई, यानी इस अवधि में इन करीब 73 प्रतिशत लोगों को झूठी बदनामी का सामना करना पड़ा। उन्हें दोषी नहीं होते हुए भी मानसिक संताप झेलना पड़ा।
गृह मंत्री ने बताया कि इन संशोधनों का अर्थ कतई ये नहीं है कि किसी भी लोकसेवक के खिलाफ अदालत के माध्यम से पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज होगा ही नहीं। इसके लिए 180 दिन के अंदर मंजूरी प्राधिकारी को किसी लोकसेवक के खिलाफ जांच कर सुनिश्चित करना होगा कि मुकदमा दर्ज होने योग्य है या नहीं। यदि आरोप सही पाए जाते हैं तो इसकी स्वीकृति दी जाएगी और मुकदमा दर्ज कर कानून सम्मत कार्रवाई होगी।
उन्होंने बताया कि अब तक यही होता आया है कि मुकदमा झूठा हो या सच्चा, मुकदमा दर्ज होते ही वह मीडिया के लिए बड़ी खबर बन जाता है और निर्दोष होते हुए भी संबंधित लोकसेवक को सामाजिक अपमान का सामना करना पड़ता है। उसका नाम, उसका फोटो और उसके परिवार के बारे में जानकारी तक प्रकाशित हो जाती है। भले ही बाद में प्रकरण झूठा निकल जाए। अब तक जितने भी ऎसे प्रकरण दर्ज हुए हैं, उनमें ज्यादातर बाद में झूठे ही निकले हैं। कटारिया ने बताया कि संशोधनों के बाद भी भ्रष्ट लोकसेवक कानून के दायरे से बाहर नहीं हो पाएगा। क्योंकि अगर आरोपों में सच्चाई पाई गई तो उसके खिलाफ हर हाल में कानूनी कार्रवाई होगी। संशोधनों से लोकसेवक को किसी भी तरह की अदालती कार्यवाही से इम्यूनिटी नहीं मिलेगी।
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