जयपुर । खान महाघूसकांड को लेकर राजस्थान सरकार की पूरे देश में किरकिरी हुई। वहीं भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट में खान विभाग की खामियों को देखकर लगता है कि रिश्वत का घड़ा भर चुका था, और खान महाघूसकांड का पर्दाफाश होते ही फूट गया। रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में खानों के आवंटन में पहले आओ पहले पाओ के नीति के तहत 382 मामलों में से 315 मामलों के आवेदनों को उनकी तारीख से प्राप्ति दिनांक को अंतिम रूप नहीं दिया गया। इसके अलावा वर्ष 2012-2015 के दौरान अयोग्य घोषित 13 हजार 977 आवेदनों में से 1749 आवेदन नियमों के निर्धारित 12 महीने से अधिक 5 साल से अधिक समय से लंबित थे। वहीं कई मामलों में अनिवार्य दस्तावेजों के पूर्ति के बिना ही आवेदकों को खनन पट्टे दिए गए। रिपोर्ट के मुताबिक खनिज अभियंता राजसमंद में 32 आवेदनों की जांच में यह सामने आया कि आवेदन पत्रों और शपथ पत्रों पर किये गये हस्ताक्षर प्रस्तुत दस्तावेजों पैजे पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि से नहीं मिलते थे। इसके अलावा आदिवासी क्षेत्र जैसे बांसवाड़ा में कुछ चयनितों को खनिज पट्टों का अनियमित आवंटन किया गया। साथ ही आदिवासी क्षेत्र में गैर आदिवासी व्यक्ति को खनन पट्टे का अनियमित तरीके से हस्तांतरण किया गया।
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