जयपुर। भीलवाडा, अलवर में हुए कोआपरेटिव बैंकों के घोटालों के बाद जयपुर का इंटीग्रल अरबन कोआपरेटिव बैंक भी इन दिनों वित्तीय अनियमिताओं को लेकर चर्चाओं में है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी तीन साल की आॅडिट रिपोर्ट में बैंक के कामकाज पर गंभीर आपत्तियां जताई है। इस बैंक की जयपुर, अजमेर में कई शाखाएं जिनमें जनता की करोड़ों रुपए की जमाएं हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सूचना के अधिकार के तहत मिली आॅडिट रिपोर्ट में बैंक की ओर से दिए जा रहे बैंक प्रबंधन, कामकाज, यहां किए जाने वाले खर्चे और बैंक लोन पर सवाल उठाएं हैं। 2012-13 की रिपोर्ट में बताया गया है कि बैंक का क्रेडिट एप्रेजल सिस्टम कमजोर है। बैंक की लोन मंजूर करने वाली कमेटी लोन लेने वालों से कोई सवाल जवाब नहीं करती। लोन प्रपोजल मंजूर करते समय यह भी
नहीं देखा जाता कि देने वाले की रीपेमेंट केपेसिटी भी है या नहीं। बैंक के पास लोन के जितने भी आवेदन आते है सभी मंजूर कर दिए जाते हैं। यहां तक कि रिजर्व बैंक के सर्कुलर की भी पालना नहीं की जाती।
बैंक के कोष के दुरुपयोग की आशंका
रिर्जव बैंक ने साफ तौर पर आपत्ति जताई है कि बैंक के सीईओ केशव बड़ाया, विल्फ्रेड एजुकेशन सोसायटी के सचिव भी है। ये एजुकेशन सोसायटी बैंक की सदस्य है इसका बैंक में खाता है जो बैंक से लेनदेन करती है। लेनदेन में सोसायटी पैसा जमा भी कराती है और निकालती है। पैसा जमा कराने और निकालने का कोई फिक्स पैरामीटर नहीं बनाया गया है। बड़ाया के बैंक का सीईओ होना
यह साफ तौर पर हितों के टकराव और फंड के दुरुपयोग होने की आंशका जाहिर करता है।
लोन के फंड का उपयोग तक नहीं देखा
बैंक प्रबंधन यह भी नहीं देखता कि जिस व्यक्ति ने लोन लिया है उसका सही उपयोग भी हो रहा है अथवा नहीं। जिस काम के लिए लोन लिया गया है उसका उपयोग किस तरह किया जा रहा है। जिन लोगों ने पहले से ही दूसरे बैंकों से लोन ले रहे हैं उसका रिकाॅर्ड तक चैक नहीं किया जाता है। यहां तक कि क्रेडिट रेटिंग संस्था सिबिल से उसे वेरिफाइड तक नहीं किया जाता कि आवेदक का पिछला रिकाॅर्ड किस तरीके का रहा है। दूसरे बैंकों से एनओसी नहीं ली जाती है।
बैंक के खर्चों का रिकाॅर्ड नहीं
आॅडिट में यह भी आपत्ति की गई है कि बैंक प्रबंधन अनाप शनाप खर्चे करता है जिसका कोई लेखाजोखा तक पेश नहीं किया जाता। इसी तरह 26.95 लाख रुपए का एक वित्तीय खर्चा बैंक ने दिखाया है जो बैंक की एमआई रोड से सोडाला ट्रांसफर की गई शाखा का है। इसमें विज्ञापन व अन्य खर्चे करना बताया है लेकिन इसका कोई रिकाॅर्ड नहीं बता पाया। इसी तरह का एक और खर्चा एजेंटों
जमाओं को बढ़ाने के लिए किया गया है। बैंक ने बताया है कि 2013 में 57 लाख रूपए कर्मचारियों के बोनस के रूप में दिए हैं। बैंक के 425 कर्मचारियों में से उसके यहां 151 कर्मचारियों को तीन महीने के अनुबंध पर रखा गया था। उन्हें इसके लिए उन्हें इंसेटिव देना बताया है पर आपत्ति यह
जताई गई है कि जिन लोगों को अनुबंध पर रखा गया था उन्हें कोई टारगेट नहीं दिया गया। बैंक की जमाओं में सिर्फ 6 प्रतिशत की ही बढ़ोतरी हुई। इससे आशंका है कि जो इंसेटिव देना बताया जा रहा है वह वास्तविक लोगों को नही दिया गया है। बैंक ने इसी तरह 206.18 लाख रुपए का खर्चा प्रिटिंग, स्टेशनरी और विज्ञापनों करना बताया है लेकिन इसमें से प्रिटिंग व स्टेशनरी के बिल
संताषजनक नहीं मिले जिससे इनके वास्तविक होने पर संदेह है।
ग्राहकों की शिकायतों की अनदेखी
बैंक प्रबंधन ग्राहकों की शिकायतें दूर करने में अनदेखी करता रहा। इस कारण बैंक के ग्राहकों ने रिर्जव बैंक को बैंक की शिकायतें की। इनमें ज्यादातर शिकायतें यह थी कि बैंक लोन मंजूर तो कर देता है लेकिन भुगतान जारी करने में देरी की जाती है। इसका खामियाजा ग्राहक को भुगतना पड़ता
है। बैंक ग्राहकों से लोन को एनपीए में डाल कर रिकवरी प्रोसेस शुरू कर देता है। इस तरह की करीब 14 शिकायतें रिर्जव बैंक को मिली है।
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