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जयपुर। गुजरात के चुनावी रण में भले ही भाजपा जीती हो या कांग्रेस हारी हो, राजस्थान के दो नेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही। कांग्रेस के चुनाव की रणनीति राजनीति के जादूगर कहलाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की थी, वहीं भाजपा की कमान राजस्थान से राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेन्द्र यादव के पास थी। दोनों पार्टियों ने इन दोनों नेताओं को चुनाव प्रभारी बनाया हुआ था।
अशोक गहलोत को पंजाब के चुनाव में कांग्रेस को जिताने का अनुभव था। यहीं वजह थी कि कांग्रेस ने गुजरात चुनाव में मुख्य रणनीतिकार बनाया। गहलोत ने चुनाव से तीन महीने पहले ही गुजरात में डेरा जमा लिया था और अपनी गोटियां फिट करनी शुरू कर दी थी। भाजपा को नुकसान पहुंचाने वाले तीन युवा चेहरे तीन युवा चेहरों –
हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से पार्टी की तरफ खींचा। तीनों का समर्थन कांग्रेस को दिलाया। कुछ हद तक कांग्रेस को इसका फायदा भी मिला। जीएसटी और नोटबंदी पर उनका ध्यान कम रहा। राहुल गांधी का मंदिर-मंदिर जाकर ढोक देना इसी रणनीति का हिस्सा रही। आखिर में आखिरी दौर में धर्म या सॉफ्ट हिन्दुत्व जैसे मुद्दे और अपने
बुजुर्ग नेताओं के ऊटपटांग बयानों ने राहुल की मेहनत पर पानी फेर दिया।
दूसरी ओर भाजपा ने राजनीति में गहलोत से कम अनुभवी सांसद और राष्ट्रीय महासचिव भूपेन्द्र यादव पर भरोसा किया। यादव को भी बिहार चुनाव में पार्टी ने प्रभारी बनाया था। उस समय पार्टी तो हार गई लेकिन यादव को खासा अनुभवी बना दिया। यादव को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का भरोसा हासिल था। यही कारण रहा कि उन्होंने यादव को एक बार फिर गुजरात का चुनाव प्रभारी बना कर कमान सौंपी। चुनाव प्रचार से पूर्व गहलोत जिस तरह अपनी शतरंजी चाले चल रहे थे उससे लग रहा था कि वह यादव को मात दे देंगे। गुजरात चुनाव के पहले दौर में यह नजर भी आया। सौराष्ट्र में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया। इसके बाद यादव ने पीएम मोदी के साथ चुनाव को भावनात्मक मुद्दे से जोड़ कर पूरा माहौल बदल डाला और गहलोत को राजनीति की शतरंज में मात दे डाली।
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