बूंदी। भारत की द्वितीय काशी के नाम से विख्यात बूंदी नगर अपनी स्थापना के समय से ही विद्वानों, वीरों और संतों के आश्रय की त्रिवेणी रही है। हर मोड़ पर बल खाती, अंगडाईयां लेती अरावली की तलहटी में बसी बूंदी जिसने अपने विशाल वक्ष में जमीन की मान की रक्षा के लिए प्राणों को हथेली पर रखकर झूमने वाले वीरों की अमर गाथाएं छुपा रखी हैं। प्रसिद्ध पुष्कर मेले की भव्यता के समकक्ष ही बूंदी जिले के केशवराय पाटन में भी एक कार्तिक मेले का भव्य आयोजन होता है। हाड़ौती अंचल में विविध प्रसंगाें में बूंदी जिला महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
चम्बल नदी के तट पर बने केशवराय पाटन भगवान के मंदिर की ऊंचाई का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह मंदिर मीलों दूर से ही नजर आने लगता है। इसके एक ओर चम्बल की अथाह गहराई है और दूसरी और मंदिर की आकाश को छू लेने वाली बनावट का बहुत ही सुन्दर, मनोहारी और मन को लुभाने वाला दृश्य है। यहां अन्य स्थानों के विपरीत चम्बल नदी पूर्वामुखी होकर बहती है। नदी तट से 59 सीढ़ियां चढने पर मुख्य मंदिर आता है। मंदिर में केशवराय भगवान की भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है। पृष्ट भाग के एक अन्य छोटे मंदिर में भी चारभुजा जी की मूर्ति है।
ऐसी कथा है कि भ्रांतिदेव ने नदी में पडी हुई इन मूर्तियों को खोजकर नदी तट पर एक मंदिर में स्थापित किया। मंदिर के चारों तरफ विशाल परिसर में भगवान गणेश, शेषनाग, अष्टभुजा दुर्ग, सूर्य और गंगा आदि के मंदिर हैं। इस मंदिर का निर्माण बूंदी नरेश छत्रासाल सिंह ने करवाया था। केशोराय पाटन का उल्लेख पुराणों में जम्बूद्वीप के प्रमुख तीर्थों में है।
ऐसी कहावत है कि महर्षि परसराम जी ने पृथ्वी से 21 शरशमैयों का विनाश करने के पश्चात इस भूमि पर कठोर तपस्या और यज्ञ किये थे। पाण्डवों की गुफा, उनके द्वारा स्थापित पंच शिवलिंग, हनुमान मंदिर, अंजनि मंदिर व यज्ञसाला, वराह मंदिर इस पावन भूमि के अन्य पवित्रा स्थल हैं। इस पवित्रा स्थल के मध्य श्रृद्धालुआें की रंग-बिरंगी छटा, आपाधापी और सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक आस्था कुल मिलाकर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर केशवराय पाटन की मोहक छटा न केवल धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण है बल्कि इसके साथ परम्परा की मर्यादा भी जुड़ी है और समाज की नैतिक निष्ठाएं भी।
भारत के विभिन्न धार्मिक स्थलों की तरह ही हाड़ौती अंचल में भी कार्तिक माह में सुबह जल्दी ही स्नान करने की प्रथा प्रचलित है। पौ फटने (अमृत बेला) के समय लोग अपने बिस्तर छोड़कर कार्तिक स्नान के लिए अपने गांव के निकट बहने वाली नदी या कुए-बावड़ियों की और चल देते हैं। वहां पर स्नान करके लौटते वक्त महिलाएं एवं बालिकाएं मधुर भजनों के साथ अपने निकटस्थ मंदिर पर पहुंचती है और वहां पर भगवान की पूर्जा अर्चना कर धार्मिक भजन गाये जाते हैं।
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